________________
-
-
-
१२. ]
* श्री पार्श्वनाथ चरित * जिन भानूद्गमे यद्वद् भ्रमन्ति साधवो भुवि । कुलिङ्गितस्करा नष्टास्तथा चौरा 'इनोद्गमे । १०१ जिनवाररश्मिभिर्यद्वत्सन्मार्गा नाकमोक्षयोः । दृश्यन्ते च सुधर्मादीनां लोके भानुरश्मिभिः ।।११।। भवन्ति निःप्रभा यज्जिनोदये कुलिङ्गिनः । तथा सूर्योदयेऽकिञ्चित्करा ज्योतिर्गग्गा भुवि ।।१२।। विकन्ति यथा भव्य मनोन्जानि जिनेशिन: । वचोंऽशुभिस्तथान्जानि सरसीन करोत्करः ॥१३॥ रूयते कलमामन्द्रमित: सरसि सारसैः । कुकवाकरितो रम्यं रथाङ्गमिथुनेरितः ।। १४!! इत्यादिविविघानन्दवर्तते मोदनिर्भरः । प्रभातेऽत्र जगल्लोको धर्म्यध्यानादिकर्मभिः ।।१५।। मतो देधि विमुञ्च त्वं तला कुरु वृषाप्तये । धम्यंध्यानं स्तवाश्च कल्याण शतभाग्भव ।।१६।।
सुस्वप्नदर्शनावी प्रबुद्धा प्राक्तरां पुन: । प्रबोधितेति मापश्यत्प्रमोदकलितं जगन् ।।१७।। ततस्तदर्शनोद्भूततोषनिर्भर मानसा । उत्थाय शयनाच्छीघ्र धर्म्यध्यानं चकार सा ।।१८।। रूपी अन्धकार नष्ट हो जाता है उसी प्रकार सूर्य की किरणों से सुदृष्टि उत्तमदृष्टि को हरने वाला रात्रि का अन्धकार नष्ट हो गया है ॥६॥ जिस प्रकार जिनेन्द्ररूपी सूर्य का उदय होने पर साधु, पृथियो पर भ्रमण करने लगते हैं और कुलिङ्गी तथा चोर नष्ट हो जाते हैं उसी प्रकार सूर्योदय होने पर साधुजन पृथ्वी पर विचरण करते हैं और चौर नष्ट हो गये हैं ॥१०॥ जिस प्रकार जिनेन्द्र भगवान् के वचनरूपी किरणों से स्वर्ग और मोक्ष के.समीचीन-मार्ग मिस ई.पेने मगले हैं की हार लोक में गर्व की किरणों से उत्तम धर्म प्रादि के मार्ग दिखाई दे रहे हैं ॥११॥ जिस प्रकार जिनेन्द्र भगवान का उदय होने पर कुलिङ्गी-मिथ्या तापस प्रादि निष्प्रभ हो जाते हैं उसी प्रकार सूर्य का उदय होने पर ज्योतिषी वेवों के समूह पृथ्वी पर प्रकिश्चित्कर हो गये हैं अर्थात् पृथिवी पर उनका कुछ भी प्रकाश नहीं प्रसरित हो रहा है ।।१२।। जिस प्रकार जिनेन्द्र भगवान के वचनरूपी किरणों से भध्यजीवों के हृदयकमल खिल जाते है उसी प्रकार सूर्य किरणों के समूह से तालाब में कमल खिल रहे हैं ।।१३। इधर सरोवर में सारस पक्षी अव्यक्त मधुर शब्द कर रहे हैं तो इधर मुर्गे मनोहर शब्द कर रहे हैं तो इधर चकवा चकवियों के युगल सुन्दर शब्द कर रहे है ।।१४।। इस प्रकार इस प्रभातकाल में हर्ष से परिपूर्ण जगत् के जीव धर्म्य ध्यान आदि करते हुए विविध प्रकार के ग्रानन्द का अनुभव कर रहे हैं ।।१५। इसलिये हे देवि ! तुम शय्या छोड़ो और धर्म की प्राप्ति के लिये स्तवन आदि के द्वारा वयध्यान करो तथा सैकड़ों कल्याणों को प्राप्त होप्रो ।।१६।।
- उत्तम स्वप्नों के देखने से वह देवी यद्यपि बहुत पहले जाग गयी थी तथापि बन्दी. जनों के द्वारा पुनः ज गायी गयो । जागने पर उसने हर्ष से परिपूर्ण जगत् को देखा।।१७।। तदनन्तर हर्षपूर्ण जगत् के देखने से उत्पन्न संतोष से जिसका हृदय भरा हुनर है ऐमो उस १. मुर्वोवय २.मरसी मोकसंतरे व मसि-इनरोत्कर: इतिच्दः ५. वयान ८ प्रमोदकस्पिन क..।