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________________ पार्श्वनाथचरित मुक्ति मार्ग का जो वर्णन किया है उससे यह काव्य शान्त रस प्रधान काव्य बन गया है। १९ वें सर्ग में किस कार्य में प्रवृत्त होने से इस जीव को कौनसा भव मिलता है-इसका भट्टारक सकलकीर्ति ने जो वर्णन प्रस्तुत किया है वह उन लोगों को सत्पथ पर लगाने वाला है जो रात-दिन अनाचार में फंसे रहते हैं तथा आत्म हित का कभी विचार नहीं करते। वास्तव में यह सम्पूर्ण काव्य वैराग्य प्रधान है। वैराग्य उत्पत्ति के पश्चात् पार्श्वनाथ द्वारा द्वादश अनुप्रेक्षाओं का चिन्तन बहुत ही सुन्दर हुआ है। भट्टारक सकलकीर्ति निर्मन्थराज थे, वे परम मा सन्त थे। उन्होंने युवावस्था में ही अपार सम्पत्ति वैभव एवं स्त्री कुटुम्ब का त्याग किया था इसलिये उन्होंने इन भावनाओं के माध्यम से संसार का, उसमें रहने वाले संसारियों का, सुख सम्पति की अस्थिरता का, आयु, बल, शरीर एवं कुटुम्बीजनों की क्षणिकता का जिस गम्भीर शैली में प्रतिपादन हुआ है वह कवि की साधुता एवं विद्वत्ता दोनों का घोतक है। वास्तव में भावनाओं के माध्यम से उसने अपना हृदय खोलकर रख दिया है। अनित्यानुप्रेक्षा के वर्णन में भट्टारक सकलकीर्ति के निम्न छन्द को देखिये। आयुश्चाक्षचयं बलं निजवपुः सर्व कुटुम्ब धनं, राज्यं वायुकदर्थिताम्बुलहरीतुल्य जगच्चचलम् । ज्ञात्वैतर्हि शिवं जगत्रयहितं सौख्याम्बुधिं शाश्वतं दृक् चिद्वृत्तयमैर्दुतं बुधजना मुक्त्यै भजध्यं सदा ।।१४।। १५ वा सर्ग इन्हीं बारह भावनाओं के वर्णन से पूरा होता है। इस सर्ग में १३७ पथ हैं। इन भावनाओं का वर्णन किसी प्रकृति वर्णन अथवा अन्य किसी ऋतु वर्णन से कम महत्वपूर्ण नहीं है । इनमें हृदय से निकले हुए शब्द हैं। जैन विद्वानों के काव्यों के अतिरिक्त ऐसा आध्यात्मिक अथवा आत्म विकास का सुन्दर वर्णन अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। और जिसे हम केवल जैन कवियों की ही विशेषता कर सकते हैं । प्रस्तुत काव्य शृंगार वर्णन से दूर है। पंच कल्याणकों का वर्णन महाकवि भट्टारक सकलकीर्ति ने पार्श्वनाथ तीर्थकर के पाँचों कल्याणकों का विस्तृत वर्णन किया है। सर्वप्रथम कवि द्वारा माता के १६ स्वप्नों का अत्यधिक रोचक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। तीर्थकर के पांच कल्यापाकों का जैन काव्यों में वर्णन एक टेक्निकल वर्णन होता है जो तीर्थकर चरित प्रधान अधिकांश काव्य, पुराण एवं कथा परक कृतियों में मिलता है। भट्टारक सकलकीर्ति ने भी अपने इस काव्य में पार्श्वनाथ के पाँचों कल्याणकों का विस्तृत वर्णन किया है। प्रस्तुत काव्य के १० वें सर्ग में पार्श्वनाथ के गर्भ में आने के पूर्व देवों द्वारा रलों की वृष्टि, माता के देखे हुये १६ स्वप्नों का पहिले विस्तृत वर्णन और फिर उनके फल की सविस्तार व्याख्या दी गयी है। काव्य का १० वा सर्ग इन्हीं दोनों वर्णनों तक सीमित रखा गया है। पूरा वर्णन अलंकारिक भाषा में हुआ है जिससे सामान्य पाठक भी काव्य का रसास्वादन कर सकते हैं। पार्श्वनाथ की माता ने सरोवर एवं समुद्र दोनों देखे । इसका एक वर्णन काव्य में निम्न प्रकार किया गया हैतरत्सरोजकिञ्जस्कपिञ्जरोदकसच्चयम् । विद्यार्णवं स्वसूनावक्षत दिव्यं सरोवरम् ।। १०२।। क्षुभ्यन्तयब्धिमुवेल सादर्शमणिसंकुलम् । एग्ज्ञानवृत्तरलानां स्वस्य प्रत्रस्य वाकरम् ।।१०३।। अर्थात् सैरते हुये कमलों की केशर से जिसके जल का समूह पीला पीला हो रहा है तथा जो अपने पुत्र के विद्यारूप सागर के समान जान पड़ता था ऐसा सुन्दर सरोवर देखा ।। १०२।।
SR No.090346
Book TitleParshvanath Charitam
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorPannalal Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages328
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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