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पाश्वभ्युदय
इत्यमोघवर्षपरमेश्वरपरमगुरु
श्री जिनसेनाचार्यविरचिते मेघदूतवेष्टित
वेष्टितं पादभ्युदयें तद्व्याख्यायां च सुबोधिकाख्याया शठकम कृतभगवदुपसर्ग नाम तृतीयः सर्गः 11३||
अवध-असुनिरसने निश्चितात्मा त्वं एनां भोक्तुं मत्प्रामाण्यात् घमदनगरीयायाः तत्प्रमाणाय सज्जे त्वयि आसन्ने [ सति ] मृगाक्ष्याः उपरिस्पन्दनयनं मीनक्षोभात् चलकुवलयतुलां एष्यति इति शङ्क ।
अर्थ - अपने प्राणों का वियोग करने का निश्चय किए हुए तुम इस किन्नर कन्या का भोग करने के लिए मेरे वचनों को प्रमाण मानकर कुबेर की नगरी अलका को जाओ। मेरे बचनों की सत्यता का निर्णय करने के लिए तैयार तुमको समीप में पाकर मृगनयनी का ऊपर की ओर फड़कता हुआ नेत्र मछलियों के द्वारा किए गए क्षोभ के कारण चंचल नीलकमल की शोभा की समानता प्राप्त कर लेगा, में ऐसी सम्भावना करता हूँ ।
इति तृतीयः सर्गः