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पंधित टोडरमल : यक्तित्व और करिब सो खंडन करन लागो। वैष्णवन ने कही जो तेरो शास्त्रार्थ करनो होवै तो पंडितन के पास जा, हमारी मंडली में तेरे प्रायबे को काम नहीं। इहाँ खंडन मंडन नहीं है । भगवद्वार्ता को काम है। भगवद्यश सुननो हो तो इहाँ श्रावो' ।"
विक्रम संवत् १६६० में नाभादास द्वारा लिखित अष्टयाम के ब्रजभाषा गद्य का नमूना इस प्रकार है :
"तब श्री महाराज कुमार प्रथम वसिष्ठ महाराज के चरन छुइ . प्रनाम करत भए 1 फिर ऊपर वृद्ध-समाज तिनको प्रनाम करत भए । फिर श्री महाराजाधिराज जू को जोहार करिके श्री महेंद्रनाथ दशरथ जू के निकट बैठते भए ।”
पूर्व टोडरमल, जैन लेखेकों द्वारा रचित गद्य के कतिपय नमूने कालक्रमानुसार निम्नलिखित हैं :
"यथा कोई जीव मदिरा पीवाइ करि अविकल कीजै छ, सर्वस्व छिनाइ लीज छ। पद तें भ्रष्ट कीजै छै तथा अनादि ताई लेई करि सर्व जीव राशि राग द्वेष मोह अशुद्ध परिणाम करि मतवालो हलो छ, तिहि ते ज्ञानाबरणादि कर्म को बंध होइ छ ।”
उक्त गद्य खण्ड सत्रहवीं शती के पूर्वार्द्ध के प्रसिद्ध विद्वान् पंडित राजमलजी पाण्डे द्वारा रचित समयसार कलश की बालबोधिनी टीका से लिया गया है। इसके करीब पचास वर्ष बाद कविवर पंडित बनारसीदास के द्वारा लिखित 'परमार्थ वचनिका' का गद्म इस प्रकार है :
"मिथ्यादृष्टी जीव अपनी स्वरूप नहीं जानती तातें पर-स्वरूप विष मगन होइ करि कार्य मानतु है, ता कार्य करती छती अशुद्ध व्यवहारी कहिए । सम्यग्दृष्टि अपनी स्वरूप परोक्ष प्रमान करि अनुभवतु है । परसत्ता परस्वरूपसौं अपनी कार्य नहीं मानतो संतो पहि० सा० इति०, ४०४-४०५ २ वही, ४०५ ३ हि सा०, वि० ख०, ४७६-४७७