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चतुर्थ अध्याय
१५६-२०७
वर्ण्य-विषय और दार्शनिक विचार
सम्यग्वर्शन १६३, जीव और अजीव तत्त्व १६४, कर्म १६५, आस्रव तत्त्व १६७, बंध तत्त्व १६७, संबर तत्त्व १६६, निर्जरा तत्त्व १७०, मोक्ष तत्त्व १७१, पुण्य-पाए १७२, देव १७३, माास्त्र १७४, गुरु १५५, भक्ति १७६, देव और पुरुषार्थ १७७, निमित्त उपादान १७९ सम्यग्ज्ञान १८१, निश्चय और व्यवहार नय १८१, गामास !', म्यागासी १, व्यवहाराभासी १८५, उभयाभासी १६०, नयकथनों का मर्म और उनका उपयोग १६१, चार अनुयोग १६२, प्रथमानुयोग १९२, करणानुयोग १६४, धरणानुयोग १९४, द्रव्यानुयोग १९५, अनुयोगों का प्रध्ययनकम १६८, वीतरागता एकमात्र प्रयोजन १९८, न्याय व्याकरणादि शास्त्रों के अध्ययन की उपयोगिता १९६
सम्यक्चारित्र १६६. अहिंसा २०२, भावों कार तास्विक विश्लेषण २०५
विविध विचार वक्ता और श्रोता २०७, पठनपाठन के योग्य शास्त्र २११, वीतराग-विज्ञान (सम्यक्भाव ) २१५, मिथ्याभाव २१६, मूक्ष्मातिसूक्ष्म मिध्याभाव २२२, इच्छाएं २२७
पंचम अध्याय
गद्य शैली
२३३-२६०
( xxxiy )