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डॉ० हुकमचंद भारिल्ल द्वारा प्रस्तुत पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व' शोध-प्रबंध एक ऐसा ही कार्य है, जो उल्लिखित धार्मिक साहित्य की दोनों सीमानों को समाविष्ट किए हुए है ।
पंडित टोडरमलजी का समय वि० सं० १७७६-७७ से १८२३-२४ तक है। ये जयपुर के निवासी थे, तथा इनका अधिकांश जीवन ढूंढाड़ प्रदेश में ही बीता । जयपुर में धार्मिक दुराग्रह के कारण उनका प्राणान्त हुअा (प्रस्तुत ग्रंथ, पृष्ठ ५४) । इस कृति से पूर्व हिन्दी के बहुत से पाठकों की आँखों से पंडित टोडरमलजी प्रोझल ही थे; प्रस्तुत कृति के माध्यम से ही उनके व्यक्तित्व और कर्तत्व को पहली चार उजागर किया गया है। जन-जगत में दार्शनिक और वैचारिक क्षेत्र में, तथा तत्समय तंत्र-मंत्र, कर्मकाण्ड और इतर ऐहिकता की ओर उन्मुख होते हए भट्रारकवाद और उसकी सामाजिक मान्यताओं के विरुद्ध प्रबल संघर्षकर्ता के रूप में पंडित टोडरमलजी का महत्त्व एक विशाल स्वयंभूत प्रकाशस्तंभ की तरह है। पंडितजी ने अतीत की वैचारिक परम्पराओं को प्रबल तर्कों की कसौटी पर कसा, मान्य शास्त्रीय ग्रंथों-समयसार, गोम्नटकार के आलोक में उनका परिमुष्ट किया और इनमें प्रतीत होने वाले परस्पर विभिन्न मत-मतान्तरों की देश, समाज और काल-सापेक्ष संगत व्याख्याएँ प्रस्तुत की। इस कृति के लेखक डॉ० भारिल्ल ने बताया है कि गोम्मटसार का पठन-पाठन उसमें निहित सूक्ष्म सद्धान्तिक विचारणानों के कारण जैन-जगत में टोडरमलजी से पांच सौ वर्ष पूर्व प्रायः लुप्त-सा हो गया था ( प्रस्तुत ग्रंथ, पृष्ठ ६७ ) । टोडरमलजी ने इस पर 'सम्यग्ज्ञानचंद्रिका' नामक भाषाटीका लिख कर इसके पठन-पाठन का मार्ग प्रशस्त किया । बर्तमान में गोम्मटसार के अध्ययन का मुख्य आधार पं० टोडरमल की उक्त भाषाटीका ही है । यह लिखने की आवश्यकता नहीं कि दिगम्बर जैन-जगत में प्राचार्य कुन्दकुन्द रचित समयसार और सिद्धान्तचक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य रचित गोम्मटसार स्वत: प्रमाण, परमपूज्य और सर्वमान्य शास्त्र हैं। दोनों ही शास्त्र प्राकृत गाथाओं में हैं। समयसार अब से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व रचित और गोम्मटसार लगभग एक हजार वर्ष पूर्व रचित है। प्रसिद्ध है कि