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________________ पंजित टोडरमला व्यक्तित्व और कर्तव सूक्ष्म मिथ्याभावों का विश्लेषण करते समय लेखक ने सर्वत्र सन्तुलन बनाए रखा है । जहाँ उन्होंने अज्ञानपूर्वक किये जाने वाले व्रत सप प्रादि को बालवत और बालतप कहा है, वहीं उन्होंने स्वच्छंद होने का भी निषेध किया है। इस सम्बन्ध में उन्होंने अपनी स्थिति इस प्रकार स्पष्ट की है : ___ "जाकौं स्वच्छन्द होता जान, तात्रौं जैसे वह स्वच्छन्द न होय, तैसें उपदेश दे । बहुरि अध्यात्मग्रंथनि विर्षे भी स्वच्छन्द होने का जहाँ-तहाँ निषेध कीजिए है । तातें जो नीके तिनकौं सुने तो स्वच्छन्द होता नाहीं। पर एक बात सुनि अपने अभिप्रायते कोऊ स्वच्छन्द होय, तौ गन्य माता दोष है माटी, राप जीव ही का दोष है' ।' इसी नीति के अनुसार उन्होंने सर्वत्र सावधानी रखी है। इस सत्य का ज्ञान कराना भी जरूरी है कि बिना आत्मज्ञान के करोड़ों प्रयत्न करने पर भी प्रात्मोपलब्धि होना सम्भव नहीं है, और यह भी कि सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति के उपरान्त वीतरागी चारित्र से ही दुःखों से पूर्ण मुक्ति होगी। उनकी मूल समस्या यह है कि अधिकांश जैन वस्तु के मर्म को तो जानते नहीं हैं, शास्त्रों का कुछ अंश यहाँ-वहाँ से पढ़ कर अपने मन की कल्पना के अनुसार अविवेकपूर्वक धार्मिक क्रियाएँ करने लगते हैं और अपने को धर्मात्मा मान कर सन्तुष्ट हो जाते हैं । इस तरह के लोगों का चित्ररण उन्होंने इस प्रकार किया है :____ "बहुरि सर्वप्रकार धर्मकों न जानें, ऐसा जीव कोई धर्म का अंगकी मुख्यकरि अन्य धर्मनिकौं गौरग करे है। जैसे केई जीव दयाधर्मको मुख्यकरि पूजा प्रभावनादि कार्यकौं उथा है, केई पूजा प्रभावनादि धर्मको मुख्य करि हिसादिक का भय न राखें हैं, केई तप की मुख्यताकरि अार्तध्यानादि करिके भी उपवासादि कर बा प्रापको तपस्वी मानि निःशंक क्रोधादि करै हैं । केई दान की मुख्यता करि बहत पाप करिके भी धन उपजाय दान दे हैं, केई प्रारम्भ 'मो० मा प्र०, ४२६-३०
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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