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________________ वर्य विषय और दार्शनिक विचार जैन मान्यता के अनुसार यद्यपि परम ब्रह्म (वस्तुस्वरूप) के समान उसका प्रतिपादक शब्द ब्रह्म (थत) भी अनादि निधन है; तथापि कालवश (पर्यायापेक्षा) उराका उत्पाद और विनाश भी होता है। वर्तमान में पालोच्य माहित्य से सम्बन्धित पूर्व परम्परागत जैन साहित्य में प्राचार्य धरसेन के शिष्य पुष्पदन्त और भूतबलि द्वारा रचित 'षट्खण्डागम' सर्वाधिक प्राचीन रचना है। इसकी रचना का काल ईस्वी की द्वितीय शताब्दी सिद्ध होता है २ षटखण्डागम में सूत्ररूप से जीव द्वारा कर्म बंध और उससे उत्पन्न होने वाले नाना जीव-परिणामों का बड़ी व्यवस्था, सूक्ष्मता और विस्तार से विवेचन किया गया है । षट्खण्डागम की टीकाएँ क्रमशः कुन्दकुन्द, शामकुण्ड, तुम्बुलूर, समन्तभद्र और बप्पदेव ने बनाई - ऐसे उल्लेख हैं, पर ये टीकाएँ अप्राप्त हैं। उसके अन्तिम टीकाकार हैं- वीरसेनाचार्य, जिन्होंने अपनी सुप्रसिद्ध टीका 'धवला' की रचना शक सं० ७३८ तदनुसार ई० सन् ८१६ कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी को पूरी की । धरसेनाचार्य के समय के लगभग एक और प्राचार्य गुणाघर हुए जिन्होंने 'कषायमाभृत' की रचना की। इस पर भी वीरसेनाचार्य ने अपूर्ण टीका लिखी जिसे उनके निधनोपरान्त उनके शिष्य आचार्य जिनसेन ने पूर्ण की, वह 'जयधवला' के नाम से प्रसिद्ध है। घटखण्डागम के प्रथम तीन खण्डों में जीव के कर्तृत्व की अपेक्षा से और अन्तिम तीन खण्डों में कर्म प्रकृतियों के स्वरूप की अपेक्षा से , मो० मा० प्र०, १ २ भा० सं० जै यो०, ७४ ३ वही, ७५-७६ ४ वही, १२
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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