________________
१४६
परित टोडरमल : वयक्तित्व और कतत्व (३) सम्यग्ज्ञान अधिकार (४) सम्यक्चारित्र अधिकार (देशचारित्र) (५) सल्लेखना अधिकार (६) अतिचार अधिकार (७) सकलचारित्र अधिकार
उत्थानिका में मंगलाचरणोपरान्त निश्चय-व्यवहार के विषय को लिया गया है। पंडित टोइरमल ने भाषाटीका में उक्त विषय को विस्तार से स्पष्ट किया है। जो बात मूल ग्रन्थ में नहीं है, उसे अन्य ग्रन्थों के आधार एवं युक्तियों से स्पष्ट किया गया है । तत्पश्चात् बक्ता कैसा होना चाहिए, किस योग्यता का श्रोता उपदेश का पात्र है। उपदेश का क्रम क्या है, आदि बातों की चर्चा की गई है। तदनन्तर ग्रन्थ का प्रारम्भ होता है ।
सम्यग्दर्शन गधिसार में सम्मादाम का स्वरूप एवं उसके आठ अंगों का वर्णन है। भाषाटीका में सम्यग्दर्शन की परिभाषा के अंतर्गत आने वाले सात तत्त्वों का विस्तृत वर्णन है।
सम्यग्ज्ञान अधिकार में सम्यग्ज्ञान का स्वरूप बताते हा मूल में न होते हुए भी भाषाटीकाकार ने प्रमाण, प्रमाण के भेद - प्रत्यक्ष, परोक्ष (स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम); नय एवं नय के भेदों को स्पष्ट किया है। इसके अनन्तर सम्यग्ज्ञान सम्बन्धी कारणकार्य-विधान एवं सम्यग्ज्ञान के अंगों पर विचार किया गया है ।
सम्यक्चारित्र अधिकार में देशचारित्र (थावक के बारह व्रत) का विस्तृत वर्णन है । अहिंसागुव्रत के संदर्भ में अहिंसा का बहुत सूक्ष्म, गंभीर और विस्तृत विवेचन किया गया है । अहिंसा और हिंसा सम्बन्धी वर्णन में उन्हें अनेक पक्षों से देखा गया है और उनके सम्बन्ध में उठने वाले विविध पक्षों और प्रश्नों का तर्कसंगत समाधान प्रस्तुत किया गया है । अहिसा की परिभाषा भी अन्तरंग पक्ष को लक्ष्य में लेकर की गई है एवं असत्य, चोरी, अब्रह्म और परिग्रह को