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________________ रचनात्रों का परिचयात्मक अनुशालिन १०७ मामों का प्रयोग शास्त्रों में मिलता है तथा समाज में भी दोनों ही नाम प्रचलित हैं। आदि और अन्त में 'समोसरग' शब्द का प्रयोग होने से हमने इस कृति के नाम के रूप में उसका ही प्रयोग उचित समझा है। हमें जो एक मात्र प्रति प्राप्त हुई है, उसमें 'समोसरग' के 'ण' के स्थान पर एकाध स्थान पर 'न' का प्रयोग भी मिला है, किन्तु अधिकांश स्थानों पर 'ण' का ही प्रयोग है । अतः हमने 'रण' को ही ग्रहण किया है। यह रचना त्रिलोकसार के अन्त में लिखी हुई अवश्य प्राप्त हुई है पर यह त्रिलोकसार ग्रंथ का अंग नहीं है। यह एक स्वतंत्र रचना है । इसका प्राधार भी निलोकसार ग्रंथ नहीं है। इसका प्राधार 'धर्म संग्रह श्रावकाचार, आदि पुराण, हरिवंश पुराण, और त्रिलोक प्रज्ञप्ति' हैं । ग्रंथ के प्रारंभ में ग्रंथकार ने इस तथ्य को स्पष्ट स्वीकार किया है। _ 'समोसरण वर्णन लिखने की प्रेरणा पंडित टोडरमल को त्रिलोवासार भाषाटीका में वरिंगत अकृत्रिम जिन चैत्यालयों के वर्णन से प्राप्त हुई । अकृत्रिम जिन चैत्यालयों में अरहन्त प्रतिमाएं रहती हैं, ये एक तरह से समोसरण के ही प्रतिरूप हैं। उनके वर्णन के समय पंडित टोडरमल को यह विचार पाया कि धरहन्त को साक्षात् धर्मसभा समोसरण का भी वर्णन करना चाहिए। इसका उद्देश्य अरहन्त भगवान की धर्मसभा समोसरण की रचना का सामान्य ज्ञान जनसाधारण को देना है। इसकी रचना त्रिलोकसार भाषाटीका के बाद ही हुई है । अतः विक्रम सम्बत् १८१८ मे वि. सं. १८२४ के बीच ही इसका रचनाकाल रहा है। इसमें तीर्थंकर भगवान की धर्मसभा का वर्णन किया गया है । जैन परिभाषा में तीर्थंकर भगवान की धर्मसभा को 'समोसरण' या 1 "माग धर्मसंग्रह श्रावकाचार वा प्रादि पुराग्ग वा हरिवंश पुराण, वा त्रिलोक प्रज्ञप्ति या के अनुसारि समोसरणा का वर्णन करिए है | सु हे भव्य तंजानि।" २ मि. भा. टी. हस्तलिखित प्रति, ३१६ - ऐलक पन्नालाल दि० जैन सरस्वती भवन, बम्बई
SR No.090341
Book TitlePandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages395
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Story
File Size7 MB
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