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पंजिन टोडरमल : व्यक्ति और कर्तत्व भूमिका' (पौठिका) तथा अंतिम प्रशस्ति में 'भाषाटीका' शब्द मिलता है । अतः इसका सही नाम त्रिलोकसार भाषाटीका ही है ।
त्रिलोकसार मूल ग्रंथ प्राकृत भाषा में गाथाबद्ध है, जिसमें १०१८ गाथाएँ हैं । इसकी संस्कृत टीका प्राचार्य माधवचंद्र त्रैविद्य के द्वारा बनाई गई थी३ । इसके आधार पर ही इस भाषाटीका का निर्माण हुन्ना है। इस टीका का निर्माण टीकाकार की अन्तःप्रेरणा एवं ब्र० रायमल को प्रेरणा से हुआ है। स्वपर-हित, धर्मानुराग तथा करुणाबुद्धि ही अन्तःप्रेरणा की प्रेरक रही है। संस्कृत, प्राकृत भाषा ज्ञान से रहित मन्दबुद्धि जिज्ञासु जीवों को श्रिलोक संबंधी ज्ञान प्राप्ति की सुविधा प्रदान करना ही इसका मुख्य उद्देश्य रहा है ।
त्रिलोकसार भाषाटीका' की रचना सम्यग्ज्ञानचंद्रिका की रचना के उपरान्त ही हुई क्योंकि पंडित टोडरमलजी ने सम्यग्ज्ञानचंद्रिका का उल्लेख त्रिलोकसार भाषाटीका के परिशिष्ट में क्रिया है। वे लिखते हैं. 'बहुरि अलौकिक गरिगत अपेक्षा गरिणतनि की संदृष्टि
१ "इस श्रीमत् त्रिलोकसार नाम शास्त्र के मूत्र नेमिचन्द्र नामा सिद्धान्तचक्रवर्ती
करि विरचित हैं । तिनकी संस्कृत टीका की अनुसार लेई इस भाषाटीका विष अर्थ लिखोगा ।" २ "ग्रंथ त्रिलोकसार की भाषाटीका पूरन भई प्रमान ।
याके जाने जानतु हैं सत्र नाना माप लोक संस्थान ।।" 3 पु० ज० वा० गुरु, ६२ ४ "प्रथ' मंगलाचरण करि श्रीमान ग्रिलोकसार नाम शास्त्र की भाषाढीका कगिए है । अव संरकृत टीका अनुसार लिए मूल प्लास्त्र का अर्थ लिखिये ।"
- त्रिलोकमार, १ ५ "नहां प्रागन गग करि मेरे ऐसी इच्छा भई जो शारन का अर्थ भाषा रूप अक्षरनि करि लिखिए तो इस क्षेत्र काल विप मंदबुद्धि प्रने हैं, तिनका भी कल्याण होई ।"
- बिलोकसार पी० 'जीवन' पत्रिका, परिगिष्ट १ ७ त्रिलोकसार, १