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पंडित टोडरमल ; व्यक्तित्व और कर्तृस्य होता है कि सम्यग्ज्ञानचंद्रिका अपने मूल रूप में तो विक्रम संवत् १८१५ में तैयार हो चुकी थी, शेष तीन वर्ष लो उसके संशोधनादि कार्य में लगे । ब्र० रायमल के कथनानुसार तीन वर्ष उसके निर्माण में भी लगे थे, अतः उसका निर्माण कार्य का प्रारम्भ वि० सं० १५१२ में हो गया होगा, किन्तु वह पूर्ण रूप से संशोधित होकर माघ शुक्ला पंचमी, वि० सं० १८१८ को ही तैयार हुई है ।
सम्यग्ज्ञानचंद्रिका की रचना तो सिंघारगा में हो चुकी थी, पर इसका संशोधनादि कार्य जयपुर में ही हुआ । व० रायमल ने इस सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख किया है 'तव शुभ दिन मुहूर्त घिर्ष टीका करने का प्रारम्भ सिंघारणां नग्र विषे भया, सोवै तो टीका वणावते गए हम वांचते गए । ............."पीछे सवाई जैपुर आए। तहां गोमटसारादि च्यारौं ग्रन्धा के सोधि याकी बहोत प्रति उतराई। जहां सैली छी तहां सुधाइ सुधाइ पधराई । अस यां ग्रंथां का अवतार भया ।"
सम्यग्ज्ञानचंद्रिका का परिमागग ब्र० रायमन ने इक्यावन हजार श्लोक प्रमाण लिखा है, जिसमें गोमटमार जीबकाण्ड और गोम्मटसार कर्मकाण्ड की भाषार्टीका अड़तीस हजार एलोक प्रमाण एवं लब्धिसार:-क्षपणासार. की भाषाटीका तेरह हजार श्लोक प्रमाण हैं। इस परिमारग में 'अर्थसंदृष्टि अधिकार' की संदृष्टियाँ नहीं पाती हैं, वे अलग हैं । टोकानों के बीच-बीच में पाई अंकसंदृष्टियों भी इसमें नहीं आती हैं, वे भी पृथक हैं । इकहत्तर पृष्ठ की पीठिका भी अलग है। संदृष्टियाँ पीटिका आदि सब मिला कर शास्त्राकार तीनहजार चारसौनी पृष्ठों में यह टीका प्रकाशित हुई है।
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१ सिंघाणा नगर जयपुर से पश्चिम में करीव १५० कि० मी० दुर वर्तमान
खेतड़ी प्रोजेक्ट के पास है। २ जीवन पत्रिका, परिशिष्ट ? . एक लोक बसीम अशरों का माना जाता है। * जीवन पत्रिका, परिशिष्ट १