________________
अनेकरूप तथा नाशमान है। प्रत्येक पदार्थ स्वचतुष्टय की अपेक्षा अस्तिरूप है और परचतुष्टय की अपेक्षा नास्तिरूप है। कविवर पं. बनारसीदास के शब्दों में
दर्व खेत काल भाव च्यारों भेद वस्तु ही में, अपने चतुष्क वस्तु अस्तिरूप मानिये। परके चतुष्क वस्तु नासति नियत अंग, ताको भेद दर्व-परजाइ मध्य जानिये ॥ दरव तो वस्तु खेत सत्ताभूमि काल चाल, स्वभाव सहज मूल सकति बखानिये। याही भांति पर विकलप बुद्धि कलपना,
विवहारदृष्टि अंस भेद परवानिये ॥-नाटक समयसार, स्याद्वादद्वार, 10 अर्थात-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव ये चारों ही वस्तु में हैं। स्वयतुष्टय की अपेक्षा वस्तु अस्तिरूप है और परचतुष्टय की अपेक्षा नास्तिरूप है। उनका भेद द्रव्य और पर्याय में जाना जाता है। परचतुष्टय की कल्पना करना, यह व्यवहारनय का भेद
ऊपर दोहे में जो यह प्रश्न किया गया है कि काल, पवन, सूर्य और चन्द्र में से पहले किसका विनाश होगा? तो उत्तर यह है कि अवस्थाएँ चाहे जितनी बदल जाएँ, लेकिन वस्तु ज्यों की त्यों रहेंगी।
ससि पोखइ' रवि पज्जलई पवणु हलोले लेइ।
सत्त रज्जु तमु पिल्लि करि कम्मह कालु गिलेइ ॥220॥ __शब्दार्थ-ससि-शशि, चन्द्रमा; पोखइ-पोषण करता है; रवि-सूर्य; पज्जलइ-प्रज्वलित करता है; पवणु-पवन; हलोले-हिलोरे; लेइ-लेता है; सत्त रज्जु-सात राजू (प्रमाण); तमु-अन्धकार (को); पिल्लिकरि-पेलकर; कम्महं-कर्मों को; कालु-काल; गिलेइ-निगल लेता है। _ अर्थ-चन्द्रमा पोषण करता है, सूर्य प्रज्वलित करता है, पवन हिलोरें लेता है। किन्तु सात राजूप्रमाण (मध्य लोक तक) अन्धकार को भी पेल कर काल कर्मों को निगल लेता है।
1. अ पोखइं; क, द, स पोखइ ब पोक्खइ; 2. अ पज्जलइं; क, द, स पज्जलइ; 3. अ हिलोले;
क, द, ब, स हलोले; 4. अ तसि; क, द, ब, स तमु; 5. अ पत्ति; क, द, ब, स पिल्लि; - 6. अ, ब कम्मह; क, द, स कम्महं।
पाहुडदोहा : 259