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________________ सिव-सत्तिहिं मेलावडा इहु पसुवाहम्मि होइ। भिण्णिय सत्ति सिवेण सिहु विरला बुज्झइ कोइ ॥128॥ शब्दार्थ-सिव-सत्तिहिं-शिव-शक्ति के; मेलावडा-मिलाप (से); इहु-यह (यज्ञ); पसुवाहम्मि-पशुवध (करने) में; होइ-होता है; भिण्णिय सत्ति-भिन्न शक्ति (है); सिवेण सिहु-शिव के द्वारा; विरला बुज्झइ कोइ-कोई विरला पुरुष समझता है। ____ अर्थ-यह शिव तथा शक्ति का मेल पशु-वध (के लिए यज्ञ) में होता है। वस्तुतः शक्ति शिव से भिन्न है, यह कोई विरला ही समझता है। यथार्थ में प्रत्येक द्रव्य में निजी शक्ति (योग्यता) होती है। यदि उनमें शक्ति न हो, तो वे विकास नहीं कर सकते हैं। इसलिए शक्ति भिन्न है तथा योग्यता से प्राप्त हुई शिव रूप अवस्था भिन्न है। इस रहस्य को कोई परम आनन्द की अनुभूति करने वाला सच्चिदानन्द परमब्रह्म स्वरूप के स्वसंवेदन से ही विरला व्यक्ति जानता है। भावार्थ-शिव भिन्न है और शक्ति भिन्न है। यहाँ पर 'शिव' का अर्थ “शुद्ध, बुद्ध, एक स्वभाव, निज शुद्धात्मा” है। ब्रह्मदेवसूरि ने (परमात्मप्रकाश, 2, 140, 142, 146 टीका में) यही अर्थ किया है। शक्ति, प्रकृति, लक्षण, विशेष, धर्म, रूप, गुण तथा शील व आकृति एकार्थवाचक शब्द हैं। प्रायः 'धर्म' और 'शक्ति' पर्यायवाची हैं। 'धर्म' से अभिप्राय 'गुण-धर्म' से है। आत्मा में अनन्तधर्म हैं। आचार्य अमृतचन्द्र के वचन हैं- “अनन्तधर्मणस्तत्त्वं पश्यन्ती प्रत्यगात्मनः।" (समयसारकलश, 2) ... जीव द्रव्य में 47 शक्तियों का नाम-निर्देश अमृतचन्द्र ने “समयसार के परिशिष्ट में किया है। उन्होंने संक्षेप में सैंतालीस शक्तियों का वर्णन भी किया है जो बतौर नमूने के हैं। आत्मा में ऐसी अनन्त शक्तियों का भण्डार है। अतः यह स्पष्ट है कि शिव भिन्न है और शक्ति भिन्न है। उसको ‘गुण-धर्म' भी कहा गया है। कहा भी है-“शक्तिः कार्यानुमेया" (न्यायविनिश्चय विवरण, 2,18) अर्थात् शक्ति का कार्य पर से अनुमान किया जाता है, किन्तु व्यक्ति का प्रत्यक्ष दर्शन होता है। इस प्रकार शिव स्वयं द्रव्य है और उससे अनुमित होने वाली शक्ति है। . . लोक में पशु-यज्ञ में शिव और शक्ति के संगम के नाम पर जो वध किया जाता है, वह सर्वथा अनुचित तथा हिंसामूलक होने से पाप का कार्य है। 1. अ, क, द सिवसत्तिहिं; ब सिवसत्तिह; स सिवसत्तिहि; 2. अ, क, द, ब पसुवाहमि; स पसुवाहम्मि; 3. अ, क सहु; द, स सिहु, व सहूं; 4. अ, क, द, स कोइ; ब काइ। पाहुडदोहा : 155
SR No.090321
Book TitlePahud Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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