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७८ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
सोमन्तमणि-यह एक विशेष प्रकार की मणि थी जिसे स्त्रियो मांग में पहना करती थीं। इसकी कान्ति का समूह चूंघट का काम देता था । ४५५ ऐसा पद्मचरित में कहा गया है ।
चुणामणि--चूणामणि प्राय' स्वर्ण की खोल में जटित पदमराग (लालमणि) होती थी । यह मुकुट, साफे और नंगे सिर वालों के कपर भी पहिनी जाती थी। यह स्त्रियों और पुरुषो दोनो में समान रूप से प्रिय थी। राजा लोगों और सम्पन्न लोगों की चूणामणि विविध रस्नों से अटित होती थी । ४५६ पद्मपरित में मक्षाविप द्वारा सीता को देदीप्यमान चूणामणि देने का उल्लेख किया गया है।४५७ ७१वें पर्व में निर्दिष्ट मनिरत्न ४५८ से तात्पर्य सम्भवतः घृणामणि
कर्णाभूषण कुण्डल-कान का सामान्य भूषण कुण्डल था, जो एक भारी-सा घुमावदार लटकाने वाला महना था ओर लेखामात्र शरीर संचालन से हिलन हुलने लगता था । पदमचरित में 'चपलो मणिकुण्डल:' कहकर इसकी चंचलता का कथन किया गया है। कुण्डल शब्द संस्कृत के 'कुंडलिन्' (कुंडली मारने वाले सांप) से सम्मान है, क्योंकि दोनों घुमावदार होते हैं। कुण्डल तपाए गए सोने के बने होते थे और रत्न या मणि जटित होने पर रत्नकुण्डल या मणिकुण्डल कहलाते थे।५९ पद्मचरित ५० में ऐमे मणिकुण्डलों का अनेक स्थानों पर उल्लेख मिलता है।
अवतंस.१९---चरण में हर्षचरित में कान के दो आभूषणों का वर्णन किया है। एक अवतम जो प्रायः फूलों के होते थे और दूसरे कुण्डलादि आभूषण । ४४२ पद्मचरित में अवतंस को चंचल (चलावतंसका) अर्थात् हिलने-डुलने वाला कहा
बालिका–(वालिया) पदमचरित के आठवें पर्व में रविषेण ने मन्दोदरी
४५५. पन० ८७०। ४५६. मरेन्द्रदेव सिंह : भारतीय संस्कृति का इतिहास । ४५७. पदम० ३६७ ।
४५८. वही, ७१॥३५ । ४५९. शान्तिकुमार नानूराम व्यास : रामायणकालीन संस्कृति । ४६०. पद्म १९८१४७, १११३१७, ७१।१३ । ४६१. पदम० ३१३ । ४६२. वासुदेवशरण अग्रवाल ; हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १४७ । ४६३, पद्म ७॥