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________________ सामाजिक व्यवस्था : ५५ टिमकार रहित होना,२२४ नाखून और बालों का नहीं बढ़ना,२२५ मल और पसीना से रहित शरीर होना, शरीर में दूध के समान रुपिर होना, शरीर का उत्सम संस्थान, उत्तम गंध और उत्तम संहनन तथा अनन्त बल से युक्त होना,२२५ हित मित प्रिय वचन बोलना,२२ परोपकार युक्त होना,२२८ असाधारण कार्य करना,२२३ बालक होने पर भी अबालकोपित्त कार्य करना, बालकों जैसी चेष्टा करना तथा मनोहर विनय का घारक होना ये शुभ शकुन माने गये हैं। स्त्रियों की दाहिनी आंख फलकनार तथा पीछे की ओर छींक आना२१२ अशुभ माना गया है। स्वप्नों से प्राप्त शकुन-पप्रचरित के तीसरे पर्व में मरुदेवी सोलह स्वप्न सती है वो इस प्रकार है-- हायो, बेल, सह, हाथी द्वारा साने तया पांदी के कलशों से अभिषेक की जाती हुई लक्ष्मी, (पुन्नाग, मालती कुन्द तथा चम्पा बादि के) पुष्पों से निर्मित मालायें, सूर्य, चन्द्र, मौन युगल, फूलों की मालाओं से सुसज्जित पंचवर्ण के मणियों से भरा हुआ कलश, सरोवर, विशाल सागर, ऊँचा सिंहासन, विमान, सुसज्जित अनेक खण्डों वाला भवन, रत्नों की राशि तथा दक्षिणावर्त निर्धूम अम्नि देखो। मरुदेवी ने इन स्वप्नों का फल जब अपने पति नाभिराय से पूछा तो उन्होंने कहा कि है देवी ! तुम्हारे गर्भ में त्रिलोकीनाथ मे अवतार लिया है । २३५ २२४ पद्य २।९३ । २२५. पच० २।९३ । २२६. वही, २।८१ । २२७. वही, २१९० । २२८. वहीं, २१८८ २२९. वही, २२७६, ७।२१५, २१६ । २३०. वही, रा७७ । २३१, वही, ९६।२। २३२. वही, ७३११८ । २३३. पप० ३।१२४-१५३ चन्द्रप्रभचरित महाकाव्य (यह अन्य तेरहवीं शताब्दी का है) में इन सोलह स्वप्नों में से गजेन्द्र का दर्शन तीनों लोकों के एक मात्र अधिपति होने, नरेन्द्र का दर्शन गम्भीरता, सिंह का दर्शन अद्वितीय वीरता, लक्ष्मी का दर्शन इन्द्र पदवी, माला युगल का दर्शन अनन्तकीति, चन्द्रमा का दर्शन प्रसन्नता, सूर्य का दर्शन अज्ञानान्धकार से मुक्ति, मीन युगल का दर्शन सर्थ शोकों से मुक्ति, कुम्भ का दर्शन शरीर की शुभ चिह्नों से सम्पन्नता, तालाब का दर्शन तष्णाहीनता, समुद्र का दर्शन केवलज्ञान प्राप्सि, हेमसिंहासन का दर्शन सिद्धि प्राप्ति, दिव्यविमान का दर्शन स्वर्ग प्राप्ति, रत्नराशि का दर्शन गुणों की प्राप्ति और दहि का दर्शन उग्र कर्मों के बहन का सूचक माना गया है।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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