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सामाजिक व्यवस्था : ४५ जाती थीं । १२५ ईख की ही एक जाति विशेष पुण्डरा (पौड़ा) है। पद्मपरित में पौड़ों के बनों का उल्लेख आया है । इस श्रेणी के गन्ने में अधिक रस निकलता है और यह अषिक मधुर भी होता है ।
भोजन सम्बन्धी पदार्थों का वर्गीकरण पदमचरित में एक अन्य प्रकार से भी किया गया है। र, य, पे, केसानार जू के गेट या भोजन सम्बन्धी पदार्थ पाँच प्रकार के कहे गये है ।१२७ रविषेण ने इन सबके ज्ञान होने को 'आस्थाद्य विज्ञान' कहा है। यह बास्वाध्य विज्ञान पाचन (पकाना), छेदन (तोड़ना), उष्णत्वकरण (गर्म करना) आदि भेदों से युक्त है ।१२८
भश्य-जो स्वाद के लिए खाया जाता है उसे भक्ष्य कहते है। यह कृत्रिम तथा अत्रिम के भेद से दो प्रकार का है ।१२१
भोज्य–लो क्षुधा निवृत्ति के लिए लाया जाता है उसे भोज्य कहते है । इसके भी मुरूप और साधक की अपेक्षा दो भेद है। ओदन, रोटी आदि मुख्य भोज्य है और लप्सी, दाल, शाक आदि साधक भोज्य हैं । १३
पेय-शीतयोग (शर्बत), अल और मन के भेद से पेय तीन प्रकार का फहा
गया है । ३१
लेह्य-ये पदार्थ जिनको चाटकर आनन्द लिया जाता है । चष्य-- पदार्थ जिन्हें चूसकर रस लिया जाता है।
भोजन करने के बाद लवंग (लौंग) तथा उससे युक्त पान का भी व्यवहार होता था ।१३२
भोजन शाला में प्रयुक्त पात्र--पद्मचरित में भोजन बनाने के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले निम्नलिखित पात्रों के नाम आये है
स्थाली-थाली । कलश ३४... अल भरने का पड़ा। जाम्बूनदमयी पात्री-स्वर्ण की थाली । चषक'–प्याला । घट ३५...- बड़ा ।
१२५. पद्म० १२०।२३ । १२६. पद्म २।४ । १२७. वही, २४०५३ ।
१२८. वही, २४।५६ । १२९. वही, २४१५३ ।
१३०. वही, २४.५४ । १३१. वहीं, २४।५५ ।
१३२, यही, ४०।१७ । १३३. वही, ५३११३४, १२०।२१ । १३४. वही, ६०१२१, १२०१२४ । १३५. घही, ७३।१७।। १३६. वहीं, ३३११८० .