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धर्म और दर्शन : २७७ थे। जैन परम्परा के अनुसार रावण मुनिसुव्रतनाथ तोपकर के तीर्थ में हुआ था। अतः यज्ञ भी कम-से-कम उतना ही प्राचीन होना चाहिए, क्योंकि उपर्युक्त वर्णन रावण के समय का ही है।
यज्ञ की उत्पत्ति-यज्ञ की उत्पत्ति के विषय में ११वें पर्व (पमधरित) में एक कथा दी गई है जो इस प्रकार है
अयोध्या नगरी में इक्ष्वाकुकुल में एक ययाति नामक राजा हुआ। उसके सुरकान्ता नामक स्त्री से वसु नाम का पुत्र हा । उसने क्षीरकदम्बक नामक गुरु से शिक्षा पाई । ३६५ नारद और नई तामले काके
मे र एक दिन पारण मुनियों के द्वारा प्रबोध को प्राप्त हुआ क्षीरकदम्बफ मुनि हो गया । १६ अयाति भी यह समाचार जानकर श्रमण (जैन-मुनि) हो गया। बाद में वसु सिंहासन पर बैठा। उसकी बड़ी प्रतिष्ठा थी । आकाश स्फटिक को लम्बी चौड़ी शिला पर उसका सिंहासन स्थित था। अतः तीनों लोकों में ऐसी प्रसिद्धि हुई कि सत्य के बल पर वसु आकाश में निराधार स्थित है । एक दिन नारद और पर्वत के बीच में धर्मचर्चा में 'अजेयष्टमम्' इस वाक्य पर विवाद छिड़ गया। नारद ने कहा कि इसका अर्थ यह है कि अब उस पुराने धान्य को कहते हैं जिसमें कारण मिलने पर भी अंकुर उत्पन्न नहीं होते। ऐसे पान से ही यज्ञ करना चाहिए। पर्वत ने कहा कि अज नाम पशु का है अतः उनकी हिंसा करनी चाहिए । यही यज्ञ कहलाता है ।३७० अपने पक्ष की प्रबलता सिद्ध करने के लिए नारद ने कहा कि हम दोनों कल राजा वसु के पास चलें, वहाँ जो पराजित होगा उसका जीभ काट ली जावे ।।०१ पर्वत ने जब अपनी मासा को यह हाल सुनाया तो उसने कहा कि तुने मिथ्या बात कही है। अनेकों पार व्याख्या करते हुए तेरे पिता से मैंने सुना है कि अग उस पान्य को कहते हैं जिससे अंकुर नहीं होते। तू देशान्तर में जाकर मांस खाने लगा है अतः तूने मिथ्या अहंकार वश यह बात कही है। देशान्तर में आकर मांस खाने शली बात से इस बात की पुष्टि होती है उस समय इस देश में मांस नहीं खाया जाता पा, अन्य देशों में ही इसका प्रचलन था। यथार्थ अभिप्राय जानती हुई भी पर्वत को
जिसके नरबलि विधान का मार्मिक विवरण सोमदेवकृत यशस्तिलकपम्पू
न पुष्पदन्तकृत जसहरपरिउ आदि अनेक काव्यों में पाया जाता है। ३६५. पद्मा ११११३-१४ ।
३६६. वही, ११।१५,१६, २६ । ३६७. वही, १२३४
३६८. वही, १९६३५,३६ । ३६९. वहीं, ११।४२ ।
३७०. वहीं, ११६४३ । ३७१. वही, १९६४५ ।
३७२. वही, १११४८-४९ ।