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२२० : पचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
था । २५" इसके बाद राजा को मुकुट, अंगद, केयूर, हार, कुण्डल आदि से विभूपित कर दिव्य मालाओं, वस्त्रों तथा उत्तमोत्तम विलेपनों से राजा को चर्चित किया जाता था । २५६ राजा के जयजयकार की वनि लगाई जाती थी ।२५७ राजा के अभिषेक के बाद उसकी पटरानी का भी अभिषेक होता था।२५८
प्रजापालन-प्रजापालन करते समय राजा सदायार की ओर विशेष ध्यान देता था, क्योंकि राजा जैसा करता था, प्रजा भी उसीका अनुसरण करने लगती थी । ११ जिस समय प्रजा के प्रतिनिधियों द्वारा राजा को शास हुआ कि चारों ओर यह चर्या है कि गजा दशरथ के पुत्र राम रावण द्वारा हरण की गई सीता को पुनः वापिस ले आये हैं,२६° उस समय उन्हें महान् दुःख हुआ और कदाचित् प्रजा बुरे मार्ग पर न चलने लगे यह सोचकर उन्होंने सीता का परित्याग कर दिया । कुल की प्रतिष्ठा पर रामा लोग अत्यधिक ध्यान देते थे । सीता का परित्याग करते समय राम लक्ष्मण से कहते है कि हे भाई! चन्द्रमा के समान निर्मल फुल मुझे पाकर अकीतिरूपी मेघ की रेखा से आवृप्त न हो जाय, इसीलिए मैं यत्न कर रहा हूँ । २५५ मेरा यह महायोग्य, प्रकाशमान, अत्यन्स निर्मल एवं उज्ज्वल कुल जम तक कलंकित नहीं होता तब तक शीघ्र ही इसका उपाय करो। जनता के सुख के लिए प्रो अपने आपको अर्पित कर सकता है, ऐसा में निर्दोष एवं शोल मे सुशोभित सीता को छोड़ सकता है, परन्तु कीर्ति को नष्ट नहीं होने दूंगा ।२६२ पिता के समान न्यायवत्सल हो प्रजा की अच्छी तरह रक्षा करना,२६३ विचारपूर्वक कार्य करना,२६४ दुष्ट मनुष्य को कुछ देकर देश में
२५५. पद्मा ८८३० ।
२५६. प ८८३१ । २५७, वही, ८८।३२ ।।
२५८, वही, ८८१३३ 1 २५९. वही, ९६।५।
किं च यादशभु:शः कर्मयोग निषेवते ।
स एव सहतेऽस्माकमपि नाथानुवर्तिनाम् ।। पद्य० ९६।५० । २६०. प ९६४८ । २६१. शशाङ्कविमल गोत्रमको तिघनलेखया ।
मा रुधेत्प्राप्य मां भ्रातरित्यहं यत्नतत्परः ।। पद्म० ९७१२१ । २६२. कुलं महार्हमेतन्मे प्रकाशममलोज्ज्वलम् ।
यावस्कल इक्यते नाऽरं तावदीपायिकं कुरु ।। पद्य० ९७।२३ । अपि त्यजामि वैयेही निर्दोषां शीलशालिनीम् ।
प्रमादयामि नो कीति लोकसौख्यहृतात्मक: ।। पद्म ९७।२४ । २६३. पद्म ९७५११८
२६४. पद्य ९७४१२६ ।