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राजनैतिक जीवन : २११ शब्द खेट से निकला है | आदिपुराण में नदी और पर्वत से घिरे हुए नगर को खेट कहा है ।१०८
कट०९ इसे खर्वट भी कहा है। फौटिल्य कशास्त्र के अनुसार इसकी स्थिति दो सौ ग्रामों के बीच होती है । यहाँ इसे सार्वटिक कहा है । '१० आदिपुराण में इसे पर्वतीय प्रदेश से वेष्टित माना है ।११ मानसार के अनुसार स्वर्वट बहुधा पर्वत के सन्निकट स्थित होता है तथा इसमें सभी जाति के लोग रहते है । ११२
दुर्ग परचक्र (शत्र) के द्वारा आक्रान्त होने पर कभी-कभी राजा लोग दुर्ग का आश्रय लेते थे ।११३ शत्रु पर आक्रमण करने के लिए भी दुर्ग का आश्रय लेना पड़ता था। राजा कुण्डलमण्डित दुर्गमगढ़ का अवलम्बन कर सदा राजा अनरम्य की भूमि को उस तरह विराषित करता रहता था जैसे कुशील मनुष्य कुल की मर्यादा को पिराधित करता है । १५४
कोश११५ राज्य के सात अंगों में कोश का महत्त्वपूर्ण स्थान है। कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार यदि राज्यकोश स्वल्प हो चले अथवा अतकित भाव से सहसा अर्थसंकट था पड़े तो राजा अर्थसंचय का उपाय करके राज्यकोश बढ़ाए । यदि राज्य का कोई जनपद बड़ा हो, किन्तु उसदे पास धन बहुत ही कम हो अथवा यदि उसकी खेती वर्षा के पानी पर निर्भर करती हो और उसमें प्रधुर अंश का उत्पादन होता हो तो राजा उस जनपद के निवासियों से तृतीयांश या चतुर्थाश भाग ले, किन्तु यदि कोई जनपद मध्यम तथा निम्न श्रेणी का हो तो वही अन्नोत्पादन का परिमाण जाँचकर ग्राह्य अंश निर्धारित करे ।१॥
१०८. सरिगिरिभ्यां संपद्धं बोटमाहर्मनीषिण: । आदिपुराण १६।१७१ । १०९. पद्म० ३।११६ । ११०. "विशतग्राम्या खाटिकम्'-कौटिलीय अर्थशास्त्रम् २११ । १११. 'केवलं गिरिसरुवं खर्ट तत्प्रयक्षते ।।' आदिपुराण १६।१७१ । ११२, 'परितः पर्वसर्युक्तं नानाजातिगृहव॒तम् ।' मानसार अध्याय १० । ११३. पम० ४३१२८ ।
११४. पद्म० २६१४० । ११५. नही, २३।४०, २७।१०।। ११६. कोशमकोशः प्रत्युत्पन्नार्थकच्छ : संगृहणीयात् । जनपदं महान्तमल्पप्रमाम
वा देवमातृकं प्रभूतधान्यं धामस्यांश तृतीमे चतुर्थे वा याचेत । यथासार मध्यमवरं वा ।। कौटिलीयम् अर्थशास्त्रम्, पंचम अधिकरण, अध्याय २ ।