SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०८ : पप्रचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति पाताल की गहराई से दी गई है ।५ । नगर ऊँधे-ऊंचे गोपुरों से युक्त होता था ।" बड़ी-बड़ी वापिकामों, अट्टालिकाओं और तोरणों से नगर को अलंकृत किया जाता था। नगरनिवासी गृह" (घर), आगार, ७५ प्रासाद, तथा सम'' आदि स्थानों में रहते थे। आगार छोटे-छोटे महलों और प्रासाद तथा सम बसे-बड़े तथा ऊंचे महलों को कहा जाता था। इन सबको चूने से पोता जाता था । नगर में रंग-बिरंगी ध्वजायें लगाई जाती थीं। केशर आदि मनोश वस्तुओं से मिश्रित जल से पृथ्वी को सींचा जाता था । ४ काले, पीले, नीले, लाल तथा तथा हरे इस प्रकार पंचवर्णोय चूर्ण से निर्मित अनेक बेलबूटों से महलों को अलंकृत किया जाता था ।५ विभिन्न समारोहों के अवसर पर दरवाजों पर पूर्ण कलश रखे जाते थे, चन्दन मालायें बाँची जाती थी तथा उत्तमोत्तम वस्त्र लटका कर शोभा की जाती थी। नगरनिवासी-नगर में प्रायः सभी प्रकार के लोग निवास करते थे। वितीय पर्व में राजगृह नगर में स्त्रियाँ, मुनिगण, वेश्यायें, लासक (नरम करने बाले), शत्रु, शस्त्रधारी, याचक, विद्यार्थी, बन्दिजन, धूर्त, संगीतशास्त्र के पारमामी विद्वान् (गीतशास्त्रकलाकोविद), विज्ञान के ग्रहण करने में तत्पर मनुष्य (विज्ञानमहणोधुन), साधु, वगिज (व्यापारी), शरणागत मनुष्य, वार्तिक (समाचारप्रेषक) विदग्ध जन (चतुर मनुष्य) विट, चारण, कामुक, सुखीजन तथा मातंग (चाण्डाल) रहते थे, ऐसा उल्लेख आया है। पत्तम" प्राचीन ग्रन्थों में पत्तन शब्द समुद्री बन्दरगाह के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । मानसार के अनुसार उस नगर को पत्तन कहते हैं जो कि समुद्रतट पर स्थित होता है । (अन्धितीरप्रदेशे) जिसमें विशेषतः ममिए रहते हैं (बणिग्जातिभिसकीर्णम्), जहाँ वस्तुयें खरीदी और बेचो जाती है (क्रयविक्रयपूरितम्) तथा ७५. पन० ४३।१७०, २।४९ । ७७. वही, ३।३१७। ७९. वही, २।३। ८१. वही, २८२२० । ८३. बही, १२३६६ । ८५. वही, १२३६७ । ८७. वही, २।३९-४५। ७६. पर० ३।३१७, ४३।१७० 1 ७८. वही, २८।५ । ८०. वही, ८।२६ । ८२. वहीं, २१३७ । ८४, वही, १२१३६६ । ८६. वही, १२।३६८ ८८. वही, ४२१५७।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy