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________________ २०६ : पामचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति मुक्त बात कहने के कारण रावण उनकी बात टाल न सका और उसने सन्धि के लिए दूत भेजा, परन्तु दृष्टि के संकेत से रावण ने अपना दुरभिप्राय समक्षा दिया।" इसके बाद पुनः मन्दोदरी ने रावण को समझाने के लिए मन्त्रियों को प्रेरित किया तन्त्र मन्त्रियों ने स्पष्ट कह दिया कि दशानन का पासन यमराज के शासन के समान है। वे अत्यन्त मानी और अपने आप को ही प्रधान मानने वाले है । मन्त्रियों के इस काम से ही उनको विज्ञता सूचित होती है। ___मन्त्रिगण हृदय से राजा के प्रति प्रेम धारण करने वाले होते थें । जब हनुमान दीक्षा लेने का विचार व्यक्त करते हैं तो मन्त्री लोग पाोक से व्याकुल हो जाते हैं और कहते हैं कि हे देव ! भाप हम लोगों को अनाथ न करें । राजा की अनुपस्थिति में या अन्य किसी आपास में मन्त्री लोग अन्तःपुर की यत्नपूर्वक रक्षा करते थे । जब साहसगति विद्याधर ने सुग्रीव का वेष धारण कर लोगों को वास्तविक सुग्रीव के विषय में भ्रम डाल दिया तब मन्त्रियों ने सलाह की कि निर्मल गोत्र पाफर हो जााद आभूषण विभूपित , इसलिए इस निर्मल अन्तःपुर को यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए । जनपद---आर्यों के वैदिक युग में किसी एक महान पूर्वज से उत्पन्न हुई सन्तान और उसके वंशज विभिन्न परिवारों में रहते थे। इन्ही परिवारों के समूह को 'जन' कहते थे। वैदिक युग के प्रारम्भ में मे जन एक स्थान से दूसरे स्थान को घूमते-फिरते थे। धीरे-धीरे ये जन स्थायी रूप से बस गये। अपने निवास के ग्रामों तथा पायवर्ती भूभाग पर इन्होंने अपनी सत्ता स्थापित कर ली। अब ये जनपद राज्ध कहलाये । ५ पद्मचरित में छोटे-छोटे जनपदों के अस्तित्व का संकेत मिलता है। ये जनपद उम समय देश की सीमा के अन्तर्गत अमेक होते थे । ३२ देश के अन्तर्गत पत्तन, ग्राम, संवाह, मटम्ब, पुटभेदन, घोष और द्रोणमुम्न आदि आते थे । ३ आदि शब्द से यहां देश की सीमा के अन्तर्गत खेट.१४ नगर, कट को लिया जा सकता है। पदमचरित में इनमें से अधिकांश का केवल नामोल्लेख किया गया है । - ---..--.-.--. ५७. पाच ६:१३ । ५८. पप०७३।२५ । ५९. वही, १०३।५ । ६०, वाही, ७४।६५ । ६१. बी० एन० लूनिया : प्राचीन भारतीय संस्कृति, पृ० २४९ । ६२. पम० ४१६५६ । ६३. पद ४११५७ । ६४. वही, ३२२५। ६५. वही, ३२।२५ 1 ६६. वही, ३५११५
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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