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२४४ : पनवरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
सिर नीरा कोई भी स्थः कुन प्राणी के शरीर में जैसी कोमलता होती है वैसी ही कोमलता उस पुतले में रची गई थी। राजा वह पुतला पहले के समान ही समस्त परिकर के साथ महल के सातवें खण्ड में उत्तम आसन पर विराजमान किया गया था। वह मन्त्री तथा पुतला को बनाने वाला लेष्यकार ये दोनों ही राजा को कृत्रिम राजा समझते थे और बाकी सब लोग उसे यथार्थ रूप में राजा समानते थे। यही नहीं, उन दोनों को भी देखते हुए जब कभी भ्रान्ति उत्पन्न हो जाती थी।५२०
५२०, गते राजन्यमात्येन लेयं दाशरथं वपुः ।
कारितं मुख्यवपुषी भिन्न चेतनयंकया ।। पदम० २३६४१ । लाक्षादिरसयोगेन रुधिरं तत्र निर्मितम् । मार्दवं च कृतं तादृम्यादषसत्यासुधारिणा ।। पद्म० २३।४२ । वरासननिविष्टं तं वेश्मनः सप्तमे तले । युक्तं पुरैव सर्वेण परिवगेंण बिम्बकम् ।। पद्म २३३४३ । स मन्त्री लेप्पकारवप कृत्रिमं जज्ञतुर्नुपम् । भ्रान्तिहिं जायते तत्र पश्यतोषभयोरपि ।। पद्म २३६४४ ।