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मनोरंजन : १२१
से मिश्रित हो रहा था, अतः उनका मन दोला पर आरूढ़ हए के समान अस्पत माकुल हो रहा था । छात्स्यायन से पता चलता है कि वाटिका में सघन छाया में खादोला या मूला लगाया जाता था और छायादार स्थानों में विश्राम करने के लिए स्थंडिल पीठिका (बैठने के आसम) बनाए जाते थे, जिनपर सुकुमार कुसुम दल बिछा दिए जाते थे। पंखा-दोला की प्रथा वर्षा ऋतु में ही मधिक थी। आज भी सावन मास में भूले लगाए जाते है।
पर्वतारोहण पर्वतारोहण के प्रति प्राचीनकाल से ही लोगों का एक विशेष माकर्षण रहा है। यही कारण है कि हमारे बहुत से तीर्थस्पल आज भी पर्वतों या पहाड़ियों पर हैं । पचरित में राजा विद्युत्केश के संदर्भ में पर्वतारोहण की एक पलक मिलती है । लंका के राजा विद्युत्केश के विषय में कहा गया है कि वह कभी उम स्वर्णमय पर्वतों पर चढ़ता था जिनके ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों के मार्ग बने हुए थे, जिनके शिखर रत्नों से सज्जित थे और जो वृक्षों के समूह से वेष्टित थे।५ इन पर्वतों पर अच्छे-अब उद्यान निर्मित होते थे, ऐसा पहले किए गए बन-कीड़ा के वर्णन से स्पष्ट ही है।
गोष्ठी हास्य-विनोद के सार्वजनिक स्थल गोष्ठी कहलाते थे।" पप्रचरित में अनेक स्थानों पर गोष्ठी का प्रसङ्ग आमा है । फिष्कुपुर नगर का स्वामी महोदधि स्त्रियों के साथ महामनोहर उत्तुग भवन के शिखर पर सुग्दर गोष्ठीस्पी अमृत का स्वाद लेता था। अब गोष्ठियों में राजामों के गुणों की पर्चा होती सब विद्वज्जन सबसे पहले नभस्तिलक नगर के रामा मार्तडकुमाल का माम लेते थे।४० पप्रचरित में वीरपुरुष ५ को गोष्ठी, विद्वानों की गोष्ठी तथा
४३. मित्रे कामरसे तासां प्रपया पूर्वसङ्गमास् ।
मनो दोलामिवारूवं बभूवात्यन्तमाकुलम् !! पप० ८।१०२। ४४. हजारीप्रसाद द्विवेदी : प्राचीन भारत के कलात्मक विनोध, पृ. ४१ । ४५. पप०६।२३० ! ४६. नानूराम भ्यास : रामायणकालीन संस्कृति, प० १८। ४७. पप० ५३१११३ ।
४८. पद्मः ६।३८६ । ४९. वही, ६।४७६ ।
५०. वही, ५३।११३ ।