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११८ : पाचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति रसके बीच में नाना रहनों की प्रमा से ऊंचा दिखने वाला कोड़ापर्वत बना हुआ था। खिले हुए फूलों से सुशोभित वृक्षों के समूह उसकी शोभा बढ़ा रहे थे। अध्यक्त मधुर शब्दों के साथ इधर-उघर महराते पक्षियों से वह व्याप्त था। उसमें रस्नमयी भूमि से बेष्टित अनेक प्रकार की कान्ति तथा सघन पल्लवों को समीचीन छाया से युक्त लता-मण्डप२२ थे। राजा महारक्ष ने उस प्रमद दन में अपनी स्त्रियों के सा झाला की थी। कभी स्त्रियां उसे फलों से ताहना करती थो और कभी बह फूलों से स्त्रियों को ताड़ना करता था । * कोई स्त्री अन्य स्त्री के पास जाने के कारण यदि ईर्ष्या से कुपित हो जाती थी तो वह चरणों में झुककर उसे शान्त कर लेता था । इसी प्रकार कभी आप स्वयं कुपित हो जाता या तो लीला से भरी स्त्री इसे प्रसन्न करती थी।२४ कभी यह विकटारस के तट के समान सुशोभिप्त अपने वक्षःस्थल से किसी स्त्री को प्रेरणा देता था तो अन्य स्थी उसे भी अपने स्थल स्तनों के आलिंगन से उसे प्रेरणा देती थी ।२५
उपर्युक्त वर्णन से इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि वनक्रीड़ा सामु हिक रूप से भाग लेने वाले पति-पत्नियों तथा नायक-नायिकाओं के प्रेमालिशन, हास-परिहास आदि के लिए अपूर्व अवसर प्रदान करती थी। यहाँ एक बात उस्लेखनीय है कि पनचरित में कहीं-कहीं उद्यान और वन एक दुमरे के पर्यायवाचो हो गये हैं । इस प्रकार के अनेक उद्यानों तथा उनमें होने वाले अनेक प्रकार के आमोद-प्रमोदों का वर्णन पनवरित में अनेक स्थानों पर किया गया है। ये उद्यान निसर्गतः सुन्दर तो हुआ ही करते थे, इसके साथ ही साथ मनुष्य अनेक आकर्षक वस्तुओं का संयोग उपस्थित कर उसे और अधिक सुन्दर और आकर्षक बनाकर सोने में सुगंध वाली बात चरितार्थ करता था 1 उदाहरण के लिए त्रिकूटावल प्रकीर्णक, अनानम्द, सुखसे श्य, समुच्चय, घारणप्रिय, निबोष मोर प्रमाद इस प्रकार सात उगानों से घिरा था। इनमें से प्रकीर्णक नाम का कन पृथ्वोतल कहा गया है । उसके आगे जनानन्द नाम का वन था जिसमें वे ही मनुष्य कोड़ा करते थे, जिनका कि आना-जाना निषिद्ध नहीं था।२४ उसके ऊपर चलकर सुखसेव्य नामका वन या जो कोमल वृक्षों से व्याप्त था। उसकी छवि मेषसमूह के समान थी । वह नदियों और वापिकाओं के कारण मनोहर था । उस वन मे सूर्य के मार्ग को रोकने वाले केतकी और जूही भावि से सहित तथा पान
२२. पप० ५।२९६.३०० । २४. वही, ५.३०२। २६. वही, ४६।१४१, १५४ । २८. वही, ४६।१४६ ।
२३. पा. ५।३.१ । २५. वहीं, ५।३०३३ २७. वही, ४६।१४३, १४५ ।