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________________ सामाजिक व्यवस्था : ११३ को सस्सूक हो गए । नगरी के समस्त घर सूने हो गए तथा समस्त उत्सव नष्ट हो गया। ०५६ कर्णरवा नदी के तट पर पहुँचने पर राम ने उनसे लौटने को कहा तब उन्होंने उत्तर दिया--हम आपके साथ व्यान, सिंह, गजेन्द्र आदि दुष्ट जीवों के समूह से भरे हुए बन में रह सकते है पर आपके बिना स्वर्ग में भी नहीं रहना चाहते । हमारा चित्त ही नहीं लौटता है, फिर हम कैसे लौटें ? यह चित्त हो तो इन्द्रियों में प्रधान हैं। जब आप जैसे नररत्न हमें छोड़ रहे है तन हम पापी जीवों को घर से क्या प्रयोजन है ? भोगों से क्या मतलब है ? स्त्रियों से क्या अर्थ है ? तथा बन्धुओं की क्या आवश्यकता है ?१०५४ कुल की प्रतिष्ठा पर विशेष ध्यान दिया जाता था। दशरथ से अपनी प्रतिज्ञा पालन करने की प्रार्थना कर राम ने कहा-आप अपकीति को प्राप्त होते है तो मुझे इन्द्र की लक्ष्मो से भी क्या प्रयोजन है ?१०५५ लक्ष्मण भी हमें थपने पिता की उज्ज्वल कीति की रक्षा करनी चाहिए, यह निश्चय कर राम के साथ वन आने को नद्यत हो गए । १०५ एक राजा दूसरे राजा का सम्मान कुछ भेट और उपहार आदि देकर करता था । रावण की सहायता के लिए एक बार जो राजा आए थे उनका उसने अस्थ, वाहन तथा कवच भादि देकर सम्मान किया । २०५७ १०५३. पप० ३११२१५ । १०५४. पा० ३२।४४.४६ । १०५५. तात रक्षारमनः मत्यं त्यजास्मपरिचिन्तनम् । शकस्यापि श्रिया कि में त्वय्यकोतिमुपागने । पम० ३१।१२५ । १०५६. मिप्तकीर्तिममुत्पत्तिविषासव्या हि नः पितुः । तुष्णीमेवानुगच्छामि व्यायास साधुकारिणम् ।। पप० ३१११९९ । १०५७. अस्त्रवाहनसम्नाप्रभृतिप्रतिपत्तिभिः । रावणोऽपूजयद् भूपान् सुत्रामा त्रिदशानिव ।। पत्र. ५५।८९ ।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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