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सामाजिक व्यवस्था : ८९
सफेद बाल ११६ ही दिखाई दे मामा पर्याप्त था। इतने से ही वैराग्य युक्त हो लोग किसी साधु के समीप जाकर दीक्षा ले लेते थे । ५७
प्राकृतिक सम्पदा-किसी देश के आर्थिक जीवन को प्रभावित करने में उस देश की प्राकृतिक सम्पदा (नदियाँ, पर्वत, पशु-पक्षी मादि जीव-जन्तु, पक्ष, लता, वन आदि) का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रहता है। पद्मचरित में इस प्रकार की विपुल सामग्री का उल्लेख हुआ है, जो निम्न प्रकार है
वृक्षादि वनस्पति-पद्मचरित में निम्नलिखित वृक्षादि वनस्पति के नाम आए है-अशोक (४।२४), तमाल (१९३७), पुंड (), इक्ष (२४), नालिकर (नारियल, २११५), मातुलिङ्गी (बिजौरा, २।१७), पिण्डस्वर्जूर (२।१९), मोच (केला, २०१९), कुङ्कुम (केशर, २।२५), मुष्ट्ग (मूंग २।७), कोशोपुट (मोठ, २७), राजभाष (बर्वटी, २।८), गोधूम (गेहूँ, रा.), शालि (घान, २१९९) माष (उड़द, २११५६), कल्पपादक (कल्पवृक्ष, ३४९), अम्बू वृक्ष (जामुन, ३।४८), निम्ब (नीम, ३१७०), कुश (कुशा, ३।२९७), पीहि (धान, ४५१०९), कदली (केला,९३२८१), आमलकी(आँवला), नीप (६।९१), कपिस्य (कथा,६९१), भगुम (६।९१), चंदन(६।९१), प्लक्ष (६३९१), अर्जुन (६।९१), कदंब (१९९१), आन (श्राम ६।९१), प्रियाल (अचार, ६५९१), धष (६।९१), दाडिमी (१८९२), पूम (सुपारी ।९२), ककोल (६।९२), लवज (लौंग, ६९२), अश्वत्थ (पीपल, ६१३९१), सर्षप (सरसों, ९:१६९), बिम्ब (११॥३२२), नभेरुवा (१२।७६), घेणु (बांस, १२१२५८), कोद्रद (कोवों, १३।६८), बदर (बेर, १४॥२४९), किंशुक (पलाश, १९६४९), सप्तपर्णा (२०॥३८), वटवृक्ष (२७।३७), शालवृक्ष (२०।३९), सरलक्ष (देवदारु, २०४७), प्रियंगु (२०।४१, ४२), शिरीषवृका (२०४३), नागवृक्ष (२०।४४), प्लक्ष (२०।४६), सिन्दुक (तेंदू, २०१४७), पाडला (पाटलावृक्ष) २०॥४८, दषिपर्ण (२०५१), नन्दवृक्ष (२०५२), तिलकवृक्ष (२०५३), चम्यकक्ष (२०५६), बकुलवृक्ष (२०५७), मेरु अक्ष (२०५८), धववक्ष (२०५९), ताम्बूल (नागवल्ली, २०११३९), हरिचन्धन (२०१३९), कर्णिकार (क्रनेर, २१६८७), लोन (२१३८७), प्रियाल (२१६८७), काश (कास, २१।१३३), किम्पाक (२९।७७), एरण्ड (३२६०), शाल्मली (३२.१९४), कणिकार (३३।८३), किंजल्क (३८०१३), यूथिका (४०१८}, मल्लिका (मालती, ४०1८), नागा (नागकेशर, ४०८), वंश (बांस, ४१५८), इगुद (४१।२६), तिम्तिड़ी (इमली, ४२१११), विभीतक (बहेडे, ४२१११), लक्ष (लाख, ४२।११), अशोर (अखरोट, ४२।११), पाटल (गुलाब, ४२।१२),
५५६. पम० २२।१०५, १०६ ।
५५७. पप० २२११२ ।