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न्यायरत्नसार पंचम अध्याय
arfan साध्य धर्म विशेषण पक्षाभास के भेद
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सूत्र - बाधितसाध्यधर्म विशेषण पक्षाभासः साध्यस्य प्रत्यक्षादिभिनिराकरणादनेकविधः ||२३||
व्याख्या- - पूर्वोक्त रूप से जो गाभा तीन प्रकार के कड़े गये हैं उनमें से द्वितीय पक्षाभास जो वाधितसाध्यधर्माविशेषण वाला है उसके इस सूत्र द्वारा अनेक भेद प्रकट किये गये हैं । इनमें प्रत्यक्ष से, अनुमान से, आगम से, लोक से और स्ववचन से जिस पक्ष का साध्य निराकृत होता है वह उस नाम का निराकृत साध्यधर्मविशेषण बाला पक्षाभास होता है । प्रतीतसाध्यधर्मविशेषण वाला पक्षाभास और अभीप्सित साध्यवमविशेषण वाला पक्षाभास के भेद नहीं होते हैं। जब कोई ऐसा कहता है कि शब्द पौद्गलिक नहीं है क्योंकि वह आकाश का गुण है तो ऐसी प्रतिज्ञा में शब्दरूप पक्ष श्रवणप्रत्यक्ष द्वारा ग्राह्य होने के कारण अपौद्गलिक साध्य से शून्य होता है। इसलिये वह प्रत्यक्ष से बाधित साध्यधर्मविशेषण वाला होने से पक्षाभास हो जाता है। इसी तरह अन्य अनुमान आदि निराकृत साध्यधर्मविशेषण वाले पक्षाभासों के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिये । सूत्रकार स्वयं इसका खुलासा आगे के सूत्रों द्वारा कर रहे हैं ||२३||
प्रत्यक्ष निराकृतसाध्यधर्मविशेषण वाला पक्षाभास
सूत्र --- वन्हिरनुष्णो द्रव्यत्वाज्जलवदिति ||२४|
व्याख्या - जिस पक्ष का साध्य प्रत्यक्ष प्रमाण से बाधित होता है वह प्रत्यक्ष निराकृत साध्य धर्म बाला पक्षाभास है । जैसे- अग्नि ठंडी है क्योंकि वह द्रव्य है। यहां अग्नि पक्ष और ठण्डी साध्य है । पर यह साध्य स्पर्शनेन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष प्रमाण से बाधित है क्योंकि उससे तो वह उष्ण ही प्रतीत होती है अतः अग्निरनुष्णः यह प्रतिज्ञा प्रत्यक्ष निराकृतसाध्यधर्मविशेषण पक्षाभासवाली है | २४|| अनुमान निराकृत साध्य धर्म विशेषण वाला पक्षाभास --
सूत्र - नास्ति सर्वशः वक्त त्वाख्या पुरुषवदिति ॥ २५ ॥ |
- जिस पक्ष का साध्य अनुमान प्रमाण से बाधित होता है वह अनुमान निराकृतसाध्य धर्मविशेषण पक्षाभास है। जैसे जब कोई ऐसा कहता है कि सर्वज्ञ नहीं है क्योंकि बक्ता है तो यहां पर "सर्वज्ञ" पक्ष है और "नहीं है" साध्य है । पर यह साध्य " अस्ति सर्वजः सुनिश्चिता संभवादबाधकप्रमागत्वात् " अपने पक्ष में अनुमान द्वारा बाधित हो जाता है । इसलिये सर्वज्ञ नहीं है, ऐसा यह पक्ष सर्वज्ञ है इस अनुमान द्वारा बाधित हो जाने के कारण अनुमानबाधित साध्यधर्मविशेषपक्षाभास रूप है ||२५||
आगम निराकृत साध्यधर्मविशेषण वाला पक्षाभास
सूत्र - धर्मः प्रेत्यदुःखवो जीवाधिष्ठितरवाथ धर्मवदिति ।। २६ ।। व्याख्या -- यह पक्षाभास वहीं पर होता है जहाँ पर आगम से निराकृत साध्य होता है। जैस जाधिष्ठित होने के कारण पाप की तरह धर्म परलोक में दुःखदाता है ऐसे इस कथन में धर्म पक्ष है और दुःखदत्व साध्य है । यह साध्य पक्ष में आगम से बाधित होता है क्योंकि आगम में धर्म को उभयलोक सुखदायी कहा गया ॥ २६ ॥
१. धर्मः सर्वसुखाकरी हितकरो धर्मेबुधाश्चित्वले धर्मेणैत्रसमाप्यते शिवसुतं धर्माय तस्मै नमः 1 धर्मान्नास्त्मपरः सुहृदुद्भवभूतां धर्मस्य मूलं दया धर्मेचित्त महंदधे प्रतिदिनं, हे धर्म ! मी पालय ।।