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द्वितीयोऽध्यायः
प्रमाण के दो भेद :--
सूत्र-प्रत्यक्षपरोक्षभेदात् तत् प्रमाणं द्विविधम् ॥ १ ॥ अर्थ-प्रत्यक्ष और परोक्ष के भेद से वह प्रमाण दो प्रकार का है ।
व्याख्या--प्रथम अध्याय में प्रमाण के स्वरूप का वर्णन करके अब इस द्वितीय अध्याय में सूत्रकार ने उसके भेदों का वर्णन किया है। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि प्रमाण प्रत्यक्ष प्रमाण और परोक्ष प्रमाण के भेद मे दो प्रकार का होता है। अन्य सिद्धान्तकारों के द्वारा मान्य प्रमाण संख्या को हटाने के निमित्त 'द्विविधम्' इस पद का प्रयोग किया गया है ॥१॥ प्रत्यक्ष का लक्षण :
सूत्र-विशदात्मस्वरूपं ज्ञान प्रत्यक्षम् ॥ २॥
अर्थ-जिस ज्ञान का आत्मस्वरूप विशद-निर्मल होता है, उस ज्ञान का नाम प्रत्यक्ष है, अर्थात् जिस ज्ञान के द्वारा पदार्थ का स्पष्ट प्रतिभास होता है, उसी ज्ञान का नाम प्रत्यक्ष प्रमाण है।
व्याख्या-जब हम किसी व्यक्ति को अपनी आँखों से देखते हैं तो जितना स्पष्ट ज्ञान उसका हमें होता है, उतना स्पष्ट ज्ञान हमें उसका परिचय देने वाले व्यक्ति से या उसका नित्र देखने से नहीं हो सकता है, यही प्रत्यक्ष प्रमाण की निर्मलता है । इस ज्ञान को किसी दूसरे ज्ञान के सहारे की आवश्यकता नहीं होती है, जिस प्रकार की दुसरे ज्ञान के सहारे की अपेक्षा परोक्ष ज्ञान को होती है। धूम को देखने से अग्नि का ज्ञान तो हो जाता है पर वह स्पष्ट ज्ञान नहीं होता । जो ज्ञान अपने विषय को स्पष्टता के निमित्त दूसरे ज्ञान की सहायता चाहता है, वह परोक्ष ज्ञान ही है, प्रत्यक्ष नहीं। धूम को जानने के लिये हमें पहले किसी अन्य ज्ञान के सहारे की आवश्यकता नहीं होती है। किन्तु अग्नि का अनुमान धूम को जाने बिना नहीं हो सकता । इसीलिये ऐसे ज्ञान को प्रत्यक्ष नहीं कहा गया ।। २॥ विशदता–बेशद्य का लक्षण :--
सूत्र-अनुमानाद्यसंभव नसल्यं वैशद्यम् ॥३॥
अर्थ-अनुमान आदि परोक्ष प्रमाणों में नहीं संभावित हो सकने वाली जो निर्मलता है, उसी का नाम वैशद्य है।
व्याख्या-सूत्रकार ने इस मूत्र द्वारा प्रत्यक्ष प्रमाण के लक्षण में कही गई विशदता का स्वरूप समझाया है । यह तो स्पष्ट है कि अनुमान, आगम आदि परोक्ष प्रमाणों द्वारा जानी गई वस्तु में स्पष्टता रूप प्रतिभास की प्रतीति नहीं होती है। जब गुरुजन शिष्य को ऐसी बात समझाते हैं कि जहाँ-जहाँ धूम होता है, वहाँ-वहाँ नियम से अग्नि होती है । शिष्य गुरु की इस बात का अवधारण कर जब अविच्छिन्न शाखा वाले धूम को पर्वत में से उठता हुआ देखता है, तब वह इस पर्वत में अग्नि है ऐसा अनुमान उस