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प्रस्तावचा
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इतना जरूर मालूम हो जाता है कि वे अच्छे ग्रन्थकार और प्रभावक विद्वान् हुए हैं। न्यामदीपिका पृ० १२४ पर इनके नामके उल्लेखपूर्वक इनके किसी ग्रन्थका 'न शास्त्रमसद्द्रव्यंष्वयंवत्' जाक्य उद्धृत किया गया है ।
अब जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकारोंका संक्षिप्त परिचय दिया जाता है । धभूषणने निम्न जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकारोंका उल्लेख किया है ।
(क) ग्रन्थ १ तत्वार्थसूत्र, २ प्राप्तमीमांसा, ३ महाभाष्य, ४ अनेन्द्रव्याकरण, ५ प्राप्तमीमांसाविवरण ६ राजवातिक और राजधातिकभाष्य ७ न्यायविनिश्चय परीक्षा-मुख, ६ तत्वार्थश्लोकवातिक तथा भाष्य, १० प्रमाण परीक्षा, ११ पत्र-परीक्षा, १२ प्रमेय कमलमार्तड और १३ प्रमाणनिर्णय ।
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(ख) ग्रन्थकार - १ स्वामी समन्तभद्र, २ कलदेव ३ कुमारनदि ४ माणिक्यनन्ति और ५ स्याद्वाद विद्यापति ( वादिराज ) ।
१. तत्थासूत्र यह श्राचार्य उमास्वाति अथवा उमास्वामीको अमर रचना है। जो बोड़ेसे पाठभेदके साथ जैनपरम्पराकै दोनों ही दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायोंमें समानरूपले मान्य हैं और दोनों ही सम्प्रदायोंके विद्वानोंने इसपर अनेक बड़ी बड़ी टीकाएँ लिखी हैं। उनमें भा० पूज्यपादकी तस्वार्थवृत्ति ( सर्वार्थसिद्धि), प्रकलंकदेवका तत्वार्थवार्तिक, विद्यानन्दका तत्वार्थश्लोकवात्तिक, धुनसागरसूरिकी तत्त्वार्थवृति और श्वेताम्बर पपम्प में प्रसिद्ध तत्वार्थभास ये पांच टीकाएं तो तत्वार्थ सूत्र की विशाल, विशिष्ट श्रीर महत्वपूर्ण व्याख्याएं हैं। प्राचार्य महोदयने इस छोटीसी दशाध्यायात्मक अनूठी कृतिमें समस्त जैन तत्वज्ञानको संक्षेपमें 'गागरमें सागर की तरह भरकर अपने विशाल और सूक्ष्म ज्ञानभण्डारका परिचय दिया है । यही कारण है कि जैन परम्परामें तत्त्वा
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सूत्रका बहुत बड़ा महत्त्व है और उसका वही स्थान है जो हिन्दूसम्प्र दाय में गीताका है । इस ग्रन्थरत्नके रचयिता मा० उमास्वाति विक्रमकी