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न्याय-दीपिका तो यह साध्यका अनुमापक नहीं हो सकता है और यदि साध्यका अविनाभावी है तो नियमसे वह साध्यका मान करायेगा । अतएव बन ताकिकोंने त्रिरूप या पञ्चरूप आदि लिंग से जनित शानको पनुमान न कह कर अविनाभावी साधनसे साध्यके ज्ञानको अनुमानका लक्षण कहा है। प्राचार्य धर्मभूषणने भी अनुमानका यही लक्षण बतलाया है और उसका सयुक्तिक विशद व्याख्यान किया है।
१६. अवयवमान्यता__ परार्थानुमान प्रयोगके अवयवोंके सम्बन्धमें उल्लेखयोग्य और महत्व की न है, जो ऐतिहासिक दुष्टिस जानने योग्य है । दार्शनिक परम्परा में सबसे पहिले गौतमने' परार्थानुमान प्रयोगके पांच भवयोंका निर्देश किया है और प्रत्येकका स्पष्ट कयन किया है। वे अवयय ये हैं-१ प्रतिमा २ हेतु, ३ उदाहरण, ४ उपनय और निगमन । उनके टीकाकार वात्स्यायनने नैयायिकोंकी दशावयवमान्यताका भी उल्लेख किया है। इससे कम या और अविफ अवयवोंकी मान्यताका उन्होंने कोई संकेत नहीं किया। इससे मालूम होता है कि वात्स्यायनके सामने सिर्फ दो मान्यताएं थीं, एक पवावयवकी, जो स्वयं सूत्रकारको है और दूसरी दशाक्यदोंकी, जो दूसरे
१ "लिङ्गात्साध्याविनाभावाभिनिवोपकलसणात् । लिङ्गिवीरनुमान तत्फलं हानादिबुद्धयः ।।"--लधीय. का. १२ । "साधनात् साध्यविनानमनुमानम् .।"--ज्यापवि. का० १७० । "साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानम् ।"-परीक्षाम० ३-१४ । प्रमाणपरी० पृ०७० ।
२ "प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनर्यानगमनान्यवयवाः ।" स्यामसुत्र १-१.३२ ३ "दशावयवानित्ये के नैयायिका वाक्ये संचाते—जिमासा संशयः शल्यप्राप्ति: प्रयोजन संशयव्युदास इति ।"-म्यापवास्था मा० १-१.३२ ।