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________________ प्रस्तावना म्यवस्था सर्वप्रथम अकरा देवने की है'। इसके बाद माणिक्यनन्दि मादि ने परोक्षफे पांच ही भेद वणित किये हैं । हो, आचार्य बादिराजने' अवश्य परोक्षके अनुमान और पागम ये दो भेद बतलाये हैं । पर इन दो मेंदोंकी परम्परा उन्हीं तक सीमित रही है. आगे नहीं चली, क्योंकि उत्तरकालीन किसीभी ग्रन्थकारने उसे नहीं अपनाया। कुछ भी हो, स्मृति, प्रत्यभिमन. तर्क, अनुमान और यागम इन्हें सगैने निर्विवाद परोक्ष-प्रमाग स्वीकार किया है। अभिनव धर्म भूषणने भी इन्ही पांच भेदांका कवन किया है। १५. स्मृति यद्यपि अनुभूतार्थविषयक कानके रूपमें स्मृनिको सभी दर्शनोंने स्वौकार किया है । पर जैनदर्शनके सिवाय उसे प्रमाण कोई नहीं मानते हैं। साधारणतया सबका कहना यही है कि स्मृति अनुभव के द्वारा गृहीत विषयमें ही प्रवृत्त होती है, इसलिए गृहीतग्राही होनेसे वह प्रमाण नहीं है। न्याय-वैशेषिक, मीमांसक और बौद्ध सरका प्रायः यही अभिप्राय है। जैनदार्शनिकोंका कहना है कि प्रामाण्यमें प्रयोजक अविसंवाद है। जिस प्रकार प्रत्यक्षसे जाने हुए प्रथमें विसंवाद न होने से वह प्रमाण माना जाता हैं उसी प्रकार स्मृति से जाने हुए अर्थमें भी कोई विसंवाद नहीं होता और जहाँ होता है वह स्मृत्याभास है । अतः स्मृति प्रमाणही होना १ लघीय. का. १. और प्रमाणसं, का २ । २ "तच्च (परोक्ष) द्विविधमनुमानमागमश्चेति । अनुमानमपि द्विविधं गौणमुविकल्पान् । तर गौणमनुमान विविधम्, स्मरणम्, प्रत्यभिज्ञा, तश्चेति ......!"-प्रमानि० पृ० ३३ । ३ “स प्रमाणादयोऽनषिगतमर्थ समान्यतः प्रकारतो वाऽधिगममन्ति, स्मृतिः पुनर्न पूर्वानुभवमर्यादामतिकामनि, तद्विषया तदूनविषया का न तु तदधिकविषया, सोऽयं वृत्त्यन्सराद्विशेषः स्मृतेरिति विमृशति ।" तस्वशा० १-११। ४ देखो, प्रमाणपरीक्षा पृ० ६६ ।
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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