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________________ प्रस्तावना ८. प्रत्यक्ष का लक्षण दार्शनिक जगनमें प्रत्यक्षका लक्षण अनेक प्रकारका उपलब्ध होता है । नयायिक यौर वशेषिक सामान्यतया इन्द्रिय और अर्थके मन्निकर्षको प्रत्यक्ष कहते हैं। साध्य श्रोत्रादि इन्द्रियों की वृत्तिको और मीमांसक इन्द्रियोंक. नाफे साथ होने पर कसा होनेवाली मुनि (मान) को प्रत्यक्ष मानते हैं। बौद्धदर्शनमें तीन मान्यतायें है :--१ दसुबन्धुकी, २ दिग्नागकी और ३ धर्मकीत्तिकी। वसुबन्धुने' प्रर्थजन्य निर्विकल्पक वाबको, दिग्नागने' नामजात्यादिरूप कल्पनाम रहित निर्विकल्प मानको और धर्मकीत्तिने" निर्विकल्पक तथा अभ्रान्त ज्ञानको प्रत्यक्ष कहा है। सामान्यतया निर्विकल्पकको नभी बौद्ध ताकिकों ने प्रत्यक्ष ग्वीकार किया है। दर्शनान्तरोंमें और भी कितने ही प्रत्यक्ष-लक्षण किय गये हैं। पर वे सब इम सक्षिप्त स्थानपर प्रस्तुत नहीं किये जा सकते हैं। जनदर्शनमें सबसे पहले सिद्धसेन' (न्यायावतारकार) ने प्रत्यक्षका लक्षण किया है। उन्हान अपरोक्षरूपसे अर्थका ग्रहण करनवाले शानको प्रत्यक्ष कहा है। इस लक्षणम अन्योन्याश्रय नामका दीप होता है । क्योंकि प्रत्यक्ष का लक्षण परोक्षघटित है और परोक्षका लक्षण १ "इन्द्रियार्थसन्निकर्पोत्नमव्यादेश्यमयभिचारि त्र्यवमायात्मक प्रत्यक्षम्"-न्यायसूत्र० १-१-४ । २ “नत्सम्प्रयोग पूफारम्बन्द्रियाणां बुद्धिजन्म तन प्रत्यक्ष म्'-जैमिनि १-१-४। ३ "अर्थादिज्ञानं प्रत्यक्षम्'-प्रमाणस० पृ. ३२। ४ "प्रत्यक्षं कापनापौद नामजात्यासंयुत्तम् ।" प्रमाणसमु. १-। ५. "कल्पनापोटमभ्रान्तं प्रत्यक्षम्" -न्यायविन्दु० १० ११ । E "अपरोक्षतयाऽर्थस्य ग्राहकं ज्ञानमीदृशम् । प्रत्यक्षमितरद् शेयं परोक्षं गृहणेक्षया।" यायाव० का ४ ॥
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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