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________________ न्याय-दीपिका वह इस प्रकार से है-साध्यरूप से माना गया यह स्यामतारूप कार्य अपनी निष्पत्ति के लिए कारण की अपेक्षा करता है। यह कारण मंत्री का पुत्रपना तो हो नहीं सकता, क्योंकि उसके बिना भी दूसरे पुरुषों में, जो मंत्री के पुत्र नहीं हैं, श्यामता वेली जाती है। अतः जिस 5 प्रकार कुम्हार, चाफ प्रादि कारणों के बिना ही उत्पन्न होने वाले वस्त्र के कुम्हार प्राविफ कारण नहीं है उसी प्रकार मंत्री का पुत्रपना श्यामता का कारण नहीं है, यह निश्चित है। प्रतएव जहां नहीं मंत्री का पुत्रपना है यहां वहां श्यामता नहीं है, किन्तु जहाँ जहाँ प्यामता का कारण विशिष्ट नामकर्म से सहित शाकावि प्राहाररूप 10 परिणाम है वहां वहां उसका कार्य श्यामता है। इस प्रकार सामग्री कप विशिष्ट नामकर्म से सहित शाकादि पाहार परिणाम श्यामता का च्याप्य है-कारण है । लेकिन उसका गर्भस्य मंत्रीपुत्रास पक्ष में निश्चय नहीं है, अतः वह सन्निग्यामिद है ! और मंत्री का पुत्रपना तो श्यामता के प्रति कारण ही नहीं है, इसलिए वह ___15 पयामतारूप कार्य का गमक नहीं है। प्रतः उपर्युक्त अनुमान सम्प अनुमान नहीं है। 'जो उपाधि रहित सम्बन्ध है वह व्याप्ति है, और जो सामनका प्रव्यापक तथा साध्य का व्यापक है वह उपाधि है' ऐसा जिन्हीं (भैयायिकों) का कहना है। पर बह ठीक नहीं है। क्योंकि व्याप्ति का 20 उक्त लक्षण मानने पर प्रन्योन्याश्रय वोष प्राता है। तात्पर्य यह कि उपाधि का लक्षण व्याप्तिटिस है और व्याप्ति का लक्षण उपाषिषटित है। प्रतः व्याप्ति जब सिद्ध हो जावे सब उपाषि सिद्ध हो और अब उपाधि सिद्ध हो जाये तब व्याप्ति सिद्ध हो, इस तरह उपाधि रहित सम्बन्ध को व्याप्ति का लमण मानने में अन्योन्याषय मामा 25 वोष प्रसक्त होता है। इस उपाधि का निराकरण कारयकलिका में
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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