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न्याय - दीपिका
पवितकर हेत्वाभास है। इसी प्रकार और भी प्रकिञ्चित्कर के भेव स्वयं विचार लेना चाहिए। इस तरह हेतु के प्रसङ्ग से हेत्वाभासों का निरूपण किया ।
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उदाहरण का निरूपण
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यद्यपि व्युत्पन्न जाता के लिए प्रतिज्ञा और हेतु ये दो ही मबयह पर्याप्त हैं तथापि व्युत्पन्नों के ज्ञान के लिए उदाहरणादिक को भी प्राचार्यों ने स्वीकृत किया है । यथार्थ वृष्टान्त के कहने को उदा हरण कहते हैं। यह दृष्टान्त क्या है ? जहाँ साध्य और साधन की व्याप्ति दिखलाई ( जानी जाती है उसे दृष्टान्त कहते हैं । और 10 साध्य श्रग्नि प्राविक के होने पर ही साधन धूमादिक होते हैं तथा उनके नहीं होने पर नहीं होते हैं, इस प्रकार के साहचर्य रूप साध्यसाधन के नियम को व्याप्ति कहते है। बिना साधन के न होने से वादी की बुद्धिसाम्यता को 15 यह सम्प्रतिपति ( बुद्धिसाम्यता ) जहाँ सम्भव हँ वह सम्प्रतिपत्ति प्रवेश कहलाता है। जैसे— रसोईशाला आदि प्रथवा
इस व्याप्ति को ही साध्य के प्रविनाभाव कहते हैं। वादी और प्रतिस्याप्ति को सम्प्रतिपत्ति कहते हैं
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तालाब प्रारि । क्योंकि यहीं 'धूमाविक के होने पर नियम से अग्न्यादिक पाये जाते है और अत्यादिक के प्रभाव में नियम से धूमादिक नहीं पाये जाते' इस प्रकारको सम्प्रतिपत्ति—बुद्धिसाम्यता सम्भव है। उनमें 20 रसोईशाला आदि अन्वयदृष्टान्त है, क्योंकि वहाँ साध्य और साधन के सद्भावरूप श्रन्वयबुद्धि होती है। और तालाब आदि यतिरेकवृष्टान्त हैं, क्योंकि वहाँ साध्य और साधन के प्रभावरूप व्यतिरेक का ज्ञान होता है। ये दोनों ही दृष्टान्त है, क्योंकि साध्य प्रौर साधनम अन्त- अर्थात् धर्म जहाँ देखे जाते हैं वह दृष्टान्त 25 कहलाता है, ऐसा 'वृष्टाम्स' शब्द का प्रयं उनमें पाया जाता है ।