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________________ २१० न्याय-दीपिका - है, यह है यह प्रवेश घूमवाला है, क्योंकि वह मग्निवाला है।' यहाँ 'अग्नि' हेतु पक्षभूत सन्दिग्ध धूमवाले सामने के प्रवेश में रहता है और सपक्ष घूम वाले रसोईघर में रहता है तथा विपक्ष घूमरहित रूप से निश्चित प्रङ्गारस्वरूप अग्नि वाले प्रवेश में भी रहता है, 5 ऐला निश्चय है । यतः वह निश्चिसविपक्षवृत्ति धनंकान्तिक है । दूसरे शङ्कितविपक्षवृत्ति का उदाहरण यह है-'गर्भस्थ मंत्री का पुत्र श्याम होना कहिए, क्योंकि मैगी के सर पुत्रों की तरह' यहाँ 'मंत्री का पुत्रपमा' हेतु पक्षभूत गर्भस्थ मंत्री के पुत्र में रहता है, सपक्ष दूसरे मेत्रीपुत्रों में रहता है, धौर विपक 10 श्याम - गोरे पुत्र में भी रहे इस प्रङ्कर को निवृत्ति न होने से प्रत् विपक्ष में भी उसके रहने की शङ्का बनी रहने से वह शतपिकावृति है। शङ्कितविपक्षवृत्ति का दूसरा भी उदाहरण है – 'अरहन्त सर्वश नहीं होना चाहिए, क्योंकि वे वक्ता हैं, जैसे--- रम्यापुष' । यहाँ 'वक्तापन' हेतु जिस प्रकार पक्षाभूत अरहन्त में और सपक्षभूत रम्यापुरुव 15 में रहता है उसी प्रकार सर्वज्ञ में भी उसके रहने की सम्भावना की काय, क्योंकि वक्ता पन और ज्ञातापन का कोई विरोध नहीं है। जिसका जिसके साय विशेष होता है वह उस वाले में नहीं रहता है और वचन तथा ज्ञान का लोक में विशेष नहीं है, बल्कि शान वाले ( ज्ञानी } के हो वचनों में चतुराई अच्वा सुन्दरता 20 स्पष्ट देखने में प्राती है । श्रतः विशिष्ट ज्ञानवान् सर्वश में विशिष्ट वक्तापन के होने में क्या भापति है ? इस तरह वक्तापन की विपक्षभूत सर्वेश में भी सम्भावना होने से वह शङ्कितविक्षत नाम का मनैकान्तिक हेत्वाभास है। (४) किश्चित्कर- जो हेतु साध्यको सिद्धि करनेमें प्रयोजक25 असमर्थ है उसे प्रकिञ्चित्कर हेत्वाभास कहते हैं । उसके दो . I 1
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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