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________________ तीसरा प्रकाश उसका शरन कराता है। अंसे-धुएं का अग्नि के यार होने का नियम है, इसलिए धुमा अग्नि का मान कराता है । प्रकृत में मंत्री के पुत्रपने हेतु का कालेपन' साध्य के साथ न तो सहभाव नियम है और न कमभाष मियम है जिससे कि मंत्री का पुत्रपना' हेतु कालेपन' साध्य का ज्ञान कराये। 5 यपि विद्यमान मंत्री के पुत्रों में कालेपम' और मित्रो का पुत्रपन' का सहभाव है—दोनों एक साथ उपलब्ध होते हैं, पर वह सहभाव नियत नहीं है-नियमरूप में नहीं है, क्योंकि कोई यदि यह कहे कि गर्भस्य पुत्र में मंत्रो का पुत्रपन तो हो, किन्तु 'कालापन' न हो, तो इस प्रकार विपक्ष ( व्यभिधारशा ) में 10 कोई बाधक नहीं है---उक्त व्यभिचार की शकुर को दूर करने वाला अनुकूल तर्क नहीं है। अर्थात् यहाँ ऐसा तक नहीं है कि यदि कालापन न हो तो मंत्री का पुत्रपन' भी नहीं हो सकता है क्योंकि मैत्रीपुर में मंत्री के पुत्रपन' के रहने पर भी 'कालापन' सबिग्ध है। और विपक्ष में बाधक प्रमाणों-ज्यभिचारशङ्कानिवत्तक अनुकूल 15 सको के बल से ही हेतु और साध्य में व्याप्ति का निश्चय होता है। तथा ग्याप्ति के निश्चय से सहभाव अथवा कमभाष का निर्णय होता है। क्योंकि "सहभाव और कमभाव नियम को अविनामरव कहते है" ऐसा वचन है। विवाद में पड़ा हुया पदार्थ वृक्ष होना चाहिए, क्योंकि वह शिशपा (शोशम) है, जो भो शिशा होती है वह बह वृक्ष 20 होता है। जैसे—शात शिशपा वृक्ष । यहाँ यदि कोई ऐसी व्यभिचारशाखा करे कि हेतु (शिशपा) रहे साध्य (नाव) न रहे तो सामान्यवियोषभाव के नाश का प्रसङ्गरूप बाषक मौजूद है। प्रर्थात् उस व्यभिचारशका को दूर करने पाला अनुकूल तर्क विमान है। मावि कुलाव न हो तो शिशपा नहीं हो सकती; कयोंकि अमाव 25
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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