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न्या-दीपिका लिए प्रकरण मावि के द्वारा जाना पया भी पन बोलना चाहिए।" इस प्रकार वाद की अपेक्षा से परार्यानुमान के प्रतिमा पीर हेतुम को ही प्रवपद हैं, म कम हैं और न अधिक, यह सिद्ध हमा। इस तरह
अवयवों का मह संक्षेप में विखार किया, विस्तार से पश्परीक्षा से 5 जानना चाहिए ।
वीतरारकपा में अधिक प्रवपवों में बोले जाने के मौचित्य का समपन
वीतरागफया में तो शिष्यों के माशयानुसार प्रतिमा भोर हेतु में वो भी अवपन है । प्रतिमा, हेतु प्रौर उबाहरण पे सोन भी है। प्रतिमा 10 हेतु, उदाहरण और उपनय ये चार भी हैं तथा प्रतिक्षा हेतु सदाहरण,
उपनय और निगमन पे पांच भी हैं। इस तरह यथायोग मते प्रयोगों की यह व्यवस्था है। इसी बात को बीकुमारधि मट्टारक ने कहा है कि प्रयोगों के बोलने की व्यवस्था प्रतिपायों के अमिमायानुसार
करनी चाहिये-जो जितने अवयमों से समम सके उसे उतने मवयों 15 का प्रयोग करना चाहिये।"
इस प्रकार प्रतिक्षा प्रादिरूप परोपवेन से उत्पन्न हुमा भान परामुमान कहलाता है। कहा भी है-बो दूसरे के प्रतिभावित उपदेश की अपेक्षा लेकर श्रोता को सापन से साम्य का ज्ञान होता है
पह परार्धानुमान माना गया है।" 20 इस तरह अनुमान के स्वार्ष और पराप रे से भेव हैं और ये
दोनों ही अनुम्मन साध्य के साप जिसका प्रविनाभाष निश्चित है ऐसे हेतु से उत्पन्न होते हैं।
बौखों के सप्य हेतु का निराकरण
इस प्रकार उपर्युक्त विवेसम से यह प्रतिक हो जाता है कि 25 अन्यपानुपपत्ति विशिष्ट हेतु अनुमिति में कारण है। तथापि इस