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भ्याय-दीपिका
और अप्रसिद्ध है उसे साध्य कहा गया है।"
इस प्रकार अधिनाभाव निश्चयरूप एक लक्षण वाले साधन से शक्य, अभिप्रेत मौर मप्रसिखरूप साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं, यह सिद्ध हुप्रा । 5 वह अनुमान दो प्रकारका है-१ स्वार्थानुमान और २ परार्या
नुमान । जनगें स्वयं हो जाने हुए साधन से साध्य के शान होने को स्वार्यानुमान कहते हैं। प्रर्यात् –पूसरे के उपवेश (प्रतिज्ञादिवाक्यप्रयोग ) की अपेक्षा न करके स्वयं ही निश्चित किये और
पहले तर्क प्रमाण से जाने गये तथा व्याप्ति के स्मरण से सहित 10 धूमारिक साधन से पर्वत प्रादिक धमों में अग्नि प्रादि साध्य का
जो ज्ञान होता है वह स्वार्थानुमान है। जैसे—यह पर्वत अग्नियाला है; क्योंकि पूम पाया जाता है। यद्यपि स्वार्थामुमान ज्ञानरूप है तथापि समझाने के लिये उसका यह शब्द द्वारा उल्लेख किया गया
है। जैसे 'यह घर है' इस शब्द के द्वारा प्रत्यक्ष का उल्लेख किया 15 जाता है। पर्वत श्रग्निवाला है, क्योंकि धम पाया जाता है। इस
प्रकार अनुमाता मानता है— अनुमिति करता है, इस तरह स्वार्थानुमान की स्थिति है। अर्थात् - स्वानुमान इस प्रकार प्रवृत्त होता है, ऐसा समझना चाहिए।
स्वार्थानुमान के प्रङ्गों का कथन10 इस स्वार्थानुमान के तीन अङ्ग हैं--१ धमों, २ साध्य और
३ साधन । साधन साप्य का गमक (ज्ञापक) होता है, इसलिए वह गमकरूप से प्रङ्ग है । साध्य साधन के द्वार। गम्य होता है- . माना जाता है, इसलिए वह गम्परूप से अन्न है। और धों
साष्य-धर्म का प्राधार होता है, इसलिए वह साध्यधर्म के प्राधार 25 रूप से अङ्ग है। क्योंकि किसी भाषारविशेष में साध्य को सिद्धि