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तीसरा प्रकाशा
नहीं है. प्योंकि वह तो साधन सम्बन्धी पशामके ही दूर करने में परितार्थ हो जाने से साध्य समाधी मजान को दूर नहीं कर सकता है। प्रतः यायिकों में प्रभुमान का जो लक्षण कहा है कि "लिङ्गनाम अनुमान है" वह सङ्गत नहीं है। हम तो स्मरण प्रादि की उत्पत्ति में अनुभव आदि की तरह व्याप्ति स्मरण से सहित लिङ्गजान को 5 अनुमान प्रमाण की उत्पति में कारण मानते हैं। इसका खुलासा इस प्रकार है-जिस प्रकार धारणा नाम का अनुभव स्मरण में कारण होता है, तात्कालिक अनुभव तथा स्मरण प्रत्यभिज्ञान में और साध्य तथा साधनविषयक मरण, प्रत्यभिमान और अनुभव तर्क में कारण होते हैं उसी प्रकार व्याप्तिस्मरण प्रादि में माहित होकर लिहमाम 10 अनुमान की उत्पत्ति में कारण होता है वह स्वयं अनुमान नहीं है। यह कथन सुसङ्गत ही है।
शा-प्रापके मतमें--जनदर्शनमें साधनको हो अनुमानमें कारण माना है, साधन के ज्ञान को नहीं, क्योंकि "साधन से साध्य के शान होने को अनुमान कहते हैं। ऐसा पहले कहा गया है ?
15 समाधान नहीं; 'साधन से इस पद का अर्थ "निश्चय पथ प्राप्त धूमारिक से' यह विवक्षित है। क्योंकि जिस घूमाविक साइन का निश्चय नहीं प्रा है। अर्थात्-जिसे जाना नहीं है वह साधन ही नहीं हो सकता है। इसी बात को तत्वार्थश्लोकवात्तिक में कहा है-"साधन से साध्य के जात होने को विद्वानों ने अनुमान कहा 20 है।" इस वात्तिक का अयं यह है कि साधन से ---अर्थात माने हए षमादिक लिङ्ग से साध्य में अर्थान् —अग्नि प्राषिक लिङ्गी में ओ जान होता है यह अनुमान है। क्योंकि जिस धूमाविक लिङ्गको नहीं जाना है उसको साध्य के ज्ञान में कारण मानने पर सोये हुये अथवा जिन्होंने धूमाविक लिङ्ग को ग्रहण नहीं किया उनको भी 25