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________________ न्याय-दीपिका परोक्ष-निर्णय तथा परोक्षके ही दूसरे भेद मागमके वर्णन को भागमनिवंग नाम दिया है । भा० धर्मभूषणने प्रागम जब परोक्ष है तब उसे परोक्षप्रकाश में ही सम्मिलित कर लिया है-उसके वर्णन को उन्होंने स्वतन्त्र प्रकापा का रूप नहीं दिया । तीनों प्रकाशोंमें स्थूलरूपसे विषय-वर्णन इस प्रकार है: पहले प्रमाणसामान्यलक्षण-प्रकाशमें, अपमतः उद्दे शादि तीनके द्वारा अन्य-प्रवृत्तिका निर्देश, उन तीनों के लक्षण, प्रमागसामान्य का लक्षण, संशय, विपर्यय, मनव्यवसायका लक्षण, इन्द्रियादिकों को प्रमाण न हो सकनेका वर्णन, स्वत: परतः प्रामाण्यका निरूपण मौर बौडामाह, प्रामाकर तथा नयायिकोंके प्रमाण सामान्यलक्षणोंकी मालोचना करके जैनमतसम्मत सविकल्पक अगृहीतग्राही 'सम्यग्ज्ञानत्व' को ही प्रमाणसामान्य का निर्दोष स्वक्षण स्थिर किया गया है । दूसरे प्रत्यक्ष प्रकाशमें स्वकीय प्रत्यक्षकालक्षण, बोट पोर नैयायिकोंके निर्विकल्पक तथा सन्निकर्ष प्रत्यक्षलक्षणों की समालोचना, अर्थ पौर मालोको मानके प्रति कारणताका निराश,विषयको प्रतिनियामिका योम्यताका उपादान, सदुत्पत्ति भौर तदाकारता का निराकरण, प्रत्यक्ष भेदप्रभेदोंका निरूपण, प्रतीन्द्रिय प्रत्यक्षका समर्थन और सर्वशसिद्धि प्रादिका विवेचन किया गया है। तीसरे परोक्ष-प्रकाशमें, परोक्षका लक्षण, उसके स्मृति, प्रत्पमिशान, तकं, भनुमान और पागम इन पांच भेदोंका विशद वर्णन, प्रत्यभिज्ञानके एकत्वप्रत्यभिज्ञान, सादृश्यप्रत्यभिज्ञान भादिका प्रमाणान्तररूपसे उपपादन करके उनका प्रत्यभिज्ञानमें ही मन्तर्भाव होनेका सयुक्तिक समर्थन, साध्य. का लक्षण, साधनका अन्यथानुपपन्नत्व' लक्षण,रूप्य मोर पाश्चरूप्यका निराकरण, अनुमानके स्वार्थ पोर परार्थ दो भेदोका कपन, हेतु-भेदों के १ देखो प्रमाणनिर्णय पृ० ३३ :
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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