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________________ पहता प्रकाश क्योंकि प्रमासाधन और प्रमाश्रय में से किसी एकको प्रमाण माननेपर मक्षणको परस्परमें अव्याप्ति होती है। प्रमासाधन' रूप जव प्रमाणका लक्षण किया जायगा सम प्रमालय' रूप प्रमाणलक्ष्यमें लक्षण नहीं रहेगा और जब 'प्रमाश्रय' रूप प्रमाणका लक्षण माना जायगा तब 'प्रमासाधन' रूप प्रमाणलक्ष्यमें लक्षण घटित नहीं होगा। 5 तया प्रमाभय और प्रमासाधन दोनोंको सभी लक्ष्योंका लक्षण माना जाय तो कहीं भी सक्षण नहीं जायगा। सन्निकर्ष प्रादि केवल प्रमासाधनं हैं, प्रमाणके आश्रय नहीं हैं और ईश्वर केवल प्रमाका प्राश्रय है प्रमाका साधन नहीं है क्योंकि उसकी प्रमा (ज्ञान) नित्य है। प्रमाका साधन भी हो और प्रमाका प्राश्रय भी हो ऐसा 10 कोई प्रमालय नहीं है। श्रतः भवापिकोंका भी उक्त लक्षण सुलक्षण नहीं है। और भी दूसरों के द्वारा माने गये प्रमागके सामान्य लक्षण हैं। जैसे सांख्य इन्द्रियव्यापार' को प्रमाणका लक्षण मानते हैं । अरन्यायिक 'कारकसाकल्य' को प्रमाण मानते हैं, मादि । पर ये सब विधार 15 करनेपर सुलक्षण सिद्ध नहीं होते । अतः उनकी यहाँ उपेक्षा कर दी गई है । अर्थात् उनको परीक्षा नहीं की गई। अतः यही निष्कर्ष निकला कि अपने तथा परका प्रकाश करनेवाला सविकल्पक और प्रपूर्थिग्राहो सम्पन्जान ही पदार्थोके अज्ञानको दूर करने में समर्थ है। इसलिए वही प्रमाण है। इस तरह जनमत 2c सिद्ध हुआ। इस प्रकार श्रीजनाचार्य धनभूषण यति विरचित न्यायदीपिकामें प्रमाणका सामान्य लक्षण प्रकाश करनेवाला पहला प्रकाश पूर्ण हुआ।
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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