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________________ पहला प्रकाश १५१ समाधान-ऐसा कहना भी ठीक नहीं है। क्योंकि यह बात तो विपरीत पक्षमें भी समान है। हम यह कह सकते हैं कि 'अप्रमाणता तो स्वतः होती है और प्रमाणता परसे होती हैं। इसलिए अप्रमाणताकी तरह प्रमाणता भी परसे ही उत्पन्न होती है। जिस प्रकार वस्त्रसामान्यकी सामग्री लाल वस्त्रमें कारण नहीं होतो- उसके लिए पूसरी 5 ही सामग्री आवश्यक होती है उसी प्रकार ज्ञानसामान्यकी सामग्री प्रमाणपमात्र कारण नहीं हो सकी है। इन दो मिनमा अवश्य हो भिन्न भिन्न कारणोंसे होते हैं । शङ्का-प्रामाण्यका निश्चय कसे होता है ? समाधान-अभ्यस्त विषयमें तो स्वतः होता है और अनम्यस्त 10 विषयमें परसे होता है । तात्पर्य यह है कि प्रामाण्यको उत्पसि तो सर्वत्र परसे ही होती है, किन्तु प्रामाण्यका निश्चय परिचित विषय में स्वतः पौर अपरिचित विषयमें परतः होता है। शाडा--अभ्यस्त विषय क्या है ? और अनभ्यस्त विषय क्या है ? समाधान--परिचित-कई बार जाने हुए अपने गांवके तालाबका 15 जल वगैरह अभ्यस्त विषय हैं और अपरिचित नहीं आने हुए दूसरे गांवके तालाबका जल वगैरह अनभ्यस्त विषय हैं। शंका-स्वतः क्या है और परतः क्या है ! समाधान—जानका निश्चय करानेवाले कारणोंके द्वारा हो प्रामाण्यका निश्चय होना 'स्वतः' है और उससे भिन्न कारणोंसे 20 होना 'परत: है। ___ उनमेंसे अभ्यस्त विषयमें 'जल है' इस प्रकार ज्ञान होनेपर ज्ञानस्वरूपके निश्चयके समयमें ही ज्ञानगत प्रामाणताका भी निश्चय अबश्य हो जाता है। नहीं तो दूसरे ही क्षणमें अलमें सन्देहहित प्रवृत्ति नहीं होती, किन्तु जलज्ञानके याद ही सन्वेहरहित प्रवृत्ति 25 अवश्य होती है। अतः अभ्यासवनामें तो प्रामाण्यका निश्चय
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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