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________________ १४५ पहसा प्रकाश शाका-परि गृहीतमाही जामको प्रप्रमान मानेंगे तो घटको कान लेने के बाद दूसरे किसी कार्य में उपयोगके लग जामेपर पीछे घटके हो देखनेपर जापान इमा पश्चाद्वर्ती मान अप्रमाण हो जायगा । क्योंकि पारावाहिक मानकी तरह वह भी गृहीतग्राही है-अपूर्वार्थपाहा नहीं है ? समाधान—मही; खाने गये भी पदार्थमें कोई समारोप-संशय प्रादि हो जानेपर यह परार्य भइष्ट नहीं जाने गयेके ही समान है। कहा भी है—'दृष्टोऽपि समारोपात्तादृक् [ परीक्षा० १-५ ] अर्थात् ग्रहण किया हम्मा भी पदार्य संमाय भाविक हो जाने पर ग्रहण नहीं किये हएके तुल्य है। 10 उक्त लक्षणको इन्द्रिय, लिङ्ग, शम्न और धारावाहिक ज्ञानमें प्रतिव्याप्तिका निराकरण कर बेनेसे निर्विकल्पक सामान्यावलोकनरूप दर्शनमें भी अतिव्याप्तिका परिहार हो जाता है। क्योंकि वर्शन अनिश्चयस्वरूप होनेसे प्रमितिके प्रति करन नहीं है। दूसरी बात यह है, कि वर्शन निराकार (अनिश्चयात्मक) होता है और निराकारमें 15 शानपना नहीं होता। कारण, "वांन निराकार (निविकल्पक) होता है और शान साकार ( सविकल्पक ) होता है ।" ऐसा मागमका वचन है। इस तरह प्रमानका 'सम्यक् जान' यह सक्षण प्रतिमाप्त नहीं है। और न अव्याप्त है। क्योंकि प्रत्यक्ष और परोक्षरूप अपने दोनों सयोंमें व्यापकस्पसे विद्यमान रहता है। तथा 20 प्रसम्मयी भी नहीं है, क्योंकि लक्ष्म ( प्रत्यक्ष और परोक्ष ) में उसका रहना बाधित नहीं है-वहां वह रहता है । अतःप्रमाणका उपर्युक्त लक्षण बिल्कुल निर्दोष है। प्रमानके प्रामाश्यका रूपम-- शा-प्रमाणका यह प्रामाण्य क्या है, जिससे 'प्रमाणे प्रमाण 25 कहा जासा है, अप्रमाण नहीं ?
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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