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प्रस्तावना
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न्यायदीपिका और अभिनव धर्मभूषण किसी अन्य की प्रस्तावना या भूमिका लिखने का उद्देश्य यह होता है कि उस पन्ध और ग्रन्पकार एवं प्रासङ्गिक सम्माय विषयोंके सम्बन्धमें मातम्म बानों पर प्रकाश डाला जाय, जिससे दूसरे अनेक साम्रान्त पाठकों को उस विषय की यथेष्ट जानकारी सहजमें प्राप्त हो सके ।
मान हम जिस ग्रन्धरत्नको प्रस्तावना प्रस्तुत कर रहे हैं वह 'न्यायदीपिका' है । यपि न्यायदीपिका के कई संस्करण निकल चुके हैं पार प्रायः सभी न शिक्षा संस्थानों में उसका परसे से पठन-पाठन के रूपमें विशेष ममापर है। किन्तु मभी तक हम अन्य भोर प्रधकार के नामादि सामान्य परिषद के अतिरिक्त कुछ भी नहीं जानते हैं उनका ऐतिहासिक एवं प्रामाणिक अनिकम परिवम पब तक मुप्राप्त नहीं है। प्रतः न्यायदीपिका और प्रमिनन धर्मभूषणका यपासम्भव सप्रमाण पूरा परिचय कराना ही प्रस्तुत प्रस्तावनाका मुख्य लक्ष्य है । पहले न्यायदीपिका के विषय में विचार किया जाता है।
. १. न्याय-दीपिका (5) जैन न्यायसाहित्य में न्यायवीपिका का स्थान और महरव
श्री मभिनव धर्मभूषण यतिकी प्रस्तुत 'न्यायदीपिका' संक्षिप्त एवं मत्पन्त सुविशद भोर महत्त्वपूर्ण कृति है । इसे अनन्यापकी प्रश्रमकोटिकी भी रचना कही जाय तो अनुपयुक्त न होगा; क्योंकि अनन्यायके मम्या