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________________ न्याय-दीपिका के प्रमाणविवेचनका तुलनात्मक अध्ययन करनेवाले विद्वान् सहब ही में समस गाने एक बात जो जनदर्शनकी यहाँ पर कहने के लिए रह गई है वह है सर्वज्ञतावादकी, अर्थात् जैनदर्शनमें सर्वज्ञतावादको भी स्थान दिया गया है मौर इसका सबब यह है कि पागमप्रमाणका भेद जो परामंप्रमाण मर्यात् वषम है उसकी प्रमाणता बिना सर्वशताके सभव नहीं है। कारण कि प्रत्येक दर्शनमें प्राप्तका वचन ही प्रमाण माना गया है तथा प्राप्त एवंभक पुरुष ही हो सकता है और पूर्ण मवंचकताकी प्राप्ति के लिए व्यक्तिों सर्वज्ञताका सद्भाव अस्पन्त भावश्यक माना गया है । ___ जनदर्शनमें इन भनेकान्त, प्रमाणप, नय, सप्तभंगी, स्यात् पौर मयंजताकी मान्यतामोंको गंभीर मौर विस्तृत विवेचनके द्वारा एक निष्कर्षपर पहुंचा दिया गया है। स्पायरोपिकामें थोमभिनव धर्ममूपनतिने इन्हीं विषयोंका सरल मौर संक्षिप्त बंगसे विवेचन किया है और श्री ५० परवारीसाल कोठिया ने इसे टिप्पणी भोर हिन्दी अनुवादसे सुसंस्कृत बनाकर सर्वसाधारणके लिए उपादेय बना दिया है। प्रस्तावना, परिशिष्ट आदि प्रकरणों द्वारा इसकी उपादेयता भोर भी रख गई है। मापने ग्यापयोपिका के कठिन स्थलों का भी परिश्रम के साथ स्पष्टीकरण किया है । हम प्राशा करते हैं कि श्री पं० परवारीसाल कोठिया की इस कृति का विद्वत्समाजमें समादर होगा । इत्यलम् । ता. ३१-३-४५ ) बंशीधर अन (व्याकरणाचार्य, न्यायतीयं, न्यायशास्त्री साहित्यशास्त्री) बीना-पटाखा
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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