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________________ ちら प्रस्तावना का उल्लेख किया है और तस्वार्थवार्तिक तथा न्यायविनिश्चयसे कुछ वाक्योंको उद्धृत किया है । कुमारनच्चि भट्टारक - यद्यपि इनकी कोई रचना इस समय उपलब्ध नहीं है, इससे इनका विशेष परिचय कराना अशक्य है फिर भी इतना जरूर कहा जा सकता है कि ये आ० विद्यानन्दके पूर्ववर्ती विद्वान हैं और अच्छे तार्किक हुए हैं। विद्यानन्दस्वामीने अपने प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा और तत्वार्थश्लोकवात्तिकमें इनका और इनके 'बादन्याय' का नामोल्लेख किया है तथा उसकी कुछ कारिकाएं भी उद्धृत की हैं। इससे इनकी उत्तरावधि तो विद्यानन्दका समय है अर्थात् वीं शताब्दी है । और अकल देवके उत्तरकालीन मालूम होते हैं, क्योंकि अकलङ्क देवके समकालीनका अस्तित्व परिचायक इनका अब तक कोई उल्लेख प्राप्त नहीं है । अतः अकलङ्कदेवका समय (वीं शताब्दी) इनकी पूर्वावधि है । इस तरह ये वीं वीं सदी के मध्यवर्ती विद्वान जान पड़ते है । चन्द्रगिरि पर्वतपर उत्कीर्ण शिलालेख नं० २२७ (१३६) में इनका उल्लेख है जो है वीं शताब्दीका अनुमानित किया जाता है'। इनका महत्वका 'वादन्याय' नामका तर्कग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं हैं जिसके केवल उल्लेख मिलते हैं । प्रा० धर्मभूषणने न्यायदी० पृ० ६६ और ८२ पर 'तयुक्तं कुमार विभट्टारक: कहकर इनके वादन्यायकी एक कारिकाके पूर्वार्द्ध और उत्तरार्धको अलग अलग उद्धृत किया है । माणिक्यनन्विये कुमारनन्दि भट्टारककी तरह तरह नन्दिसंघके प्रमुख प्राचार्य में हैं। इनकी एकमात्र कृति परीक्षमुख है। जिसके सम्बन्धमें हम पहले प्रकाश डाल आए हैं। इनका समय १०वीं शताब्दी के लगभग माना जाता है । ग्रन्थकारने न्यायदीपिकामें कई जगह इनका नामोल्लेख किया है । एक स्थान ( पृ० १२० ) पर तो 'भगवान' और १ देखो, जैनशिलालेखसं० पृ० १५२, ३२१ ।
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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