SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जोन अधिकार [ २१ "तेजो दिट्ठी गाणं इड्ढी सोक्खं तहेव ईसरियं । तिवणपहाणवायं माहप्पं जस्स सो अरिहो ।" तथा चोक्तं श्रीमदमृतचन्द्रसूरिभिः ( शार्दूलविक्रीडित ) "कात्यंब स्नपति ये दशदिशो थाम्ना निरुन्धति ये धामोदाममहस्विनां जनममो मुष्णन्ति रूपेण थे। HALEGE गाथार्थ--"'तेज-भामण्डल, दर्शन, ज्ञान, ऋद्धि-समवशरणादि विभूति, सौम्य, ऐश्वर्य और त्रिभुवन में प्रधान वल्लभपना ऐसा माहात्म्य जिनके है वे अरिहन्त भगवान् हैं। भावार्थ - भामण्डल, तीनों जगत् और तीनों कालों की समस्त वस्तु को एक साथ देखने और जानने में समर्थ केवलदर्शन और केवलज्ञान, समवशरण का वैभव, अनन्त सम्य इन्द्रादि भी जिनकी सेवा करें ऐसा ऐश्वर्य और त्रिभुवनाधीश का भी प्राधिपत्य ऐमा माहात्म्य जिनका है वे ही अर्हत भगवान हैं । . उसी प्रकार से अमृतचन्द्रसूरि ने भी कहा है अर्थ- जो अपनी कांति से ही दशों दिशाओं को स्नान करा रहे हैं, जो अत्यन्न उत्कट नेज को धारण करने वाले सूर्य के तेज को अपने तेज से रोक देते हैं, जो अपने रूप से सभी जनों के मन को चुराने वाले हैं, जो अपनी दिव्यध्वनि के द्वारा भव्यों के कानों में साक्षात् अमृत को झराते हुये सदृश सुख उत्पन्न करते हैं वे एक सहस्र पाठ लक्षण को धारण करने वाले तीर्थेश्वर सूरि बंद्य हैं । भावार्थ- अरिहन्त भगवान के शरीर को कांति से सम्पूर्ण दिशाय स्वच्छ हो जाती हैं, तेज से करोड़ों सूर्यो का तेज छिप जाता है, रूप से सभी जन के मन - - -. -- . -.-. १. प्रवचनसार गाथा E८/१० १६२ । इस गाथा को श्री जयसेनाचार्य ने भी कुन्दकुन्द देव कृत मानकर टीका की है और यहां श्री पद्मप्रभमलधारी देव भी कुन्दकुन्ददेव कृत बाह रहे हैं। २. ममयमार कलण-४० ।
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy