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________________ ६ ] नियमसार ( मालिनी ) जयति जयति वोरः शुद्धभावास्तमरिः त्रिभुवनजनपूज्यः पूर्णबोधक राज्यः । नत दिविज समाजः प्रास्तजन्मद्र बीज: समवसूलिनिवासः केवलनिवासः ||५|| मग्गो मग्गफलं ति य, दुविहं जिणसासणे समखादं । मग्गो मोषखउवायो, तस्स फलं होइ निव्वाणं ||२|| मार्गो मार्गफलमिति च द्विविधं जिनशासने समाख्यातम् । मार्गो मोक्षोपायः तस्य फलं भवति निर्वाणम् ||२|| मारग व मार्गफल ये दो प्रकार हैं यहाँ । जिनदेव के शासन में ये गरणवर ने है कहा । जो मोक्ष का उपाय है वो मार्ग कहाया । उसका है फल निर्धारण ऋषियों ने बताया || २ || परमागम को मैं कहूंगा । इस प्रकार विशिष्ट इष्ट देवता के स्तवन के अनन्तर सूत्रकार पूर्वाचार्य श्री कुन्दकुन्दाचार्य देव गुरुवर्य ने प्रतिज्ञा की है । इस प्रकार सभी पदों का तात्पर्य अर्थ कहा गया है । | अब श्री टीकाकार पद्मप्रभमलघारिदेव मुनिराज मंगलाचरण गाथा के अर्थ का उपसंहार करते हुए स्वयं वीर भगवान् की स्तुति करते हुये श्लोक कहते हैं ] (८) श्लोकार्थ - जिन्होंने शुद्धभावों के द्वारा कामदेव को समाप्त कर दिया है, त्रिभुवन की जनता से पूज्य हैं, पूर्णज्ञान - केवलज्ञान के एक प्रतीन्द्रिय राज्य को प्राप्त कर लिया है, देवों के समूह नमस्कृत हैं, जिन्होंने जन्मवृक्ष के बीज को नष्ट कर दिया है जो समवशरण में निवास करते हैं और जिनमें केवल लक्ष्मी निवास करती है ऐसे वे वर भगवान् इस जगत् में जयशील होवें । से गाथा २ अन्वयार्थ --- [ जिन शासने ] जिनेन्द्र भगवान के शासन में [ मार्ग मार्गफलं च इति द्विविधं समाख्यातं ] मार्ग और मार्ग का फल इस प्रकार से दो प्रकार का
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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