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________________ [ ४१३ निश्चय-परमावश्यक अधिकार अत्र स्वात्माश्रयनिश्चयधर्म्यशुक्लध्यानद्वितयमेथोपादेयमित्युक्तम् । इह हि साक्षादन्तरात्मा भगवान् क्षीणकषायः, तस्य खलु भगवतः क्षीणकषायस्य षोडशकषायाणाम भावात् दर्शनचारित्रमोहनीयकर्मराजन्ये विलयं गते अत एव सहजचिद्विलासलक्षणमत्यपूर्वमात्मानं शुद्धनिश्चयधर्मशुक्लध्यानवयेन नित्यं ध्यायति । प्राभ्यां ध्यानाभ्यां विहीनो यलिंगधारी द्रव्यश्रमणो बहिरात्मेति हे शिष्य त्वं जानीहि । --. ..----- टीका- यहां पर स्वात्माश्रित निश्चय धर्म और गलध्यान ये दो हो उपादेय हैं, ऐमा कहा है। यहां पर साक्षात् अंतरात्मा भगवान् श्रीकपात्री हैं, क्योंकि निश्चितरूप से उन भगवान के सोलह कषायों के अभाव से दर्शनमोहनीय और चारित्र मोहनीय कर्मरूपी राजयोद्धा विलय को प्राप्त हो चुके हैं इसी देत मे ये स्वाभाविक चैतन्यबिलासरूप अति अपूर्व आत्मा का शुद्धनिश्चय धर्मध्यान और शुक्लध्यान इन दोनों के द्वारा नित्य ही ध्यान करते हैं। किंतु इन दोनों ध्यान में रहित हुये द्रव्यलिंगधारी द्रव्य श्रमण बहिरात्मा हैं ऐसा है शिष्य ! तुम जानो।। विशेषार्थ-यहां पर टीकाकार ने स्पष्ट कहा है कि जिनके दर्शन मोहनीय और चारित्रमोहनीय का सर्वथा अभाव हो गया है ऐसे बारहवें गुणस्थानवर्ती महामुनि के ही निश्चय धर्मध्यान और निश्चय शुक्लध्यान होता है। इस निश्चय धर्मध्यान को धारहवें गुणस्थान में मानने की बात ध्यानशतक' ग्रंथ में भी कही है । वे क्षीणकषायी ही उत्कृष्ट अंतरात्मा हैं वे ही यहां विवक्षित हैं। इन दोनों ध्यानों से जो रहित हैं वे अहिरात्मा कहे गये हैं । इस कथन से उत्कृष्ट अंतरात्मा से अतिरिक्त सभी बहिरात्मा श्राने गये हैं। यहां बहिरामा शब्द से मिथ्यादृष्टि को नहीं लेना चाहिये । अथवा निश्चय और व्यवहार दोनों धर्मध्यानों में रहित को बहिरात्मा मानने मिथ्यादृष्टि ही आते हैं क्योकि चतुर्थ गुणस्थान में भी आज्ञा विचय आदि धर्मध्यान आने ही हैं। इस दृष्टि से जघन्य और मध्यम अंतरात्मा भी गौणरूप से आ सकते हैं सा समझना । अथवा जो धर्मध्यान और शुक्लध्यान से रहित हैं वे अर्थापत्ति से आर्तध्यान | रौद्रध्यान से सहित हो सकते हैं | वे धर्मध्यान शून्य द्रव्यलिंगी मुनि वास्तव में
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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